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________________ १६६ बृहद्गच्छ का इतिहास ___पूर्णिमागच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ४०० से अधिक जिनप्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जिनपर वि०सं०१३६८ से वि०सं०१६०४ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनमें इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम मिलते हैं, परन्तु उनमें से कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध ही स्थापित हो पाते हैं और उनके आधार पर गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : द्रष्टव्य तालिका -२ तालिका-२ सर्वाणंदसूरि (वि०सं० १४८०-१४८५) गुणसागरसूरि (वि०सं० १४८३-१५११) हेमरत्नसूरि (वि०सं० १४८६) गुणसमुद्रसूरि (वि०सं० १४९२-१५१२) सुमतिप्रभसूरि (मुख्य पट्टधर) पुण्यरत्नसूरि (पट्टधर) गुणधीरसूरि (शिष्यपट्टधर) (वि०सं० १५१२-१५३४) (वि०सं० १५१६-१५३६) प्रतिमालेख प्रतिमालेख इषी प्रकार अभिलेखीत साक्ष्यों के ही आधार पर इस गच्छ के कुछ अन्य मुनिजनों के गुरु-परम्परा की तालिका निर्मित होती है - तालिका-३ मुनिशेखरसूरि साधुरत्नसूरि (वि०सं० १४८५-१५१९)- २३ प्रतिमालेख साधुसुन्दरसूरि (वि०सं० १५०६-१५३३)३७ प्रतिमालेख श्रीसूरि (वि०सं० १४८६)१ प्रतिमालेख देवसुन्दरसूरि (वि०सं० १५४५-१५४८) ३ प्रतिमालेख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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