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बृहद्गच्छ का इतिहास ___पूर्णिमागच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित ४०० से अधिक जिनप्रतिमायें आज उपलब्ध हैं जिनपर वि०सं०१३६८ से वि०सं०१६०४ तक के लेख उत्कीर्ण हैं । इनमें इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों के नाम मिलते हैं, परन्तु उनमें से कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध ही स्थापित हो पाते हैं और उनके आधार पर गुरु-परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस प्रकार है : द्रष्टव्य तालिका -२
तालिका-२ सर्वाणंदसूरि (वि०सं० १४८०-१४८५)
गुणसागरसूरि (वि०सं० १४८३-१५११)
हेमरत्नसूरि (वि०सं० १४८६)
गुणसमुद्रसूरि (वि०सं० १४९२-१५१२)
सुमतिप्रभसूरि (मुख्य पट्टधर) पुण्यरत्नसूरि (पट्टधर) गुणधीरसूरि (शिष्यपट्टधर)
(वि०सं० १५१२-१५३४) (वि०सं० १५१६-१५३६) प्रतिमालेख
प्रतिमालेख इषी प्रकार अभिलेखीत साक्ष्यों के ही आधार पर इस गच्छ के कुछ अन्य मुनिजनों के गुरु-परम्परा की तालिका निर्मित होती है -
तालिका-३
मुनिशेखरसूरि
साधुरत्नसूरि (वि०सं० १४८५-१५१९)- २३ प्रतिमालेख
साधुसुन्दरसूरि (वि०सं० १५०६-१५३३)३७ प्रतिमालेख
श्रीसूरि (वि०सं० १४८६)१
प्रतिमालेख
देवसुन्दरसूरि (वि०सं० १५४५-१५४८) ३ प्रतिमालेख
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