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बृहद्गच्छ का इतिहास के प्रथम ६ श्लोकों में सितरोहीपुर (वर्तमान सिरोही, राजस्थान) निवासी श्रावक तिहुणा-महुणा के पूर्वजों का उल्लेख है। अन्तिम तीन श्लोकों में उक्त श्रावक द्वारा लक्षभूपति (राणालाखा अपरनाम राणालक्षसिंह६ वि०सं० १४६१-१४७६/ईस्वी सन् १४०५-१४२०) के शासनकाल में मडाहडगच्छीय आचार्य कमलप्रभसूरि के शिष्य वाचनाचार्य गुणकीर्ति को कल्पसूत्र के साथ उक्त ग्रन्थ की एक प्रति भेंट में देने का उल्लेख है।
___ मडाहडगच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची (लेख क्रमांक ६२, वि०सं० १५२०) में हरिभद्रसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि का नाम आ चुका है । यद्यपि एक मुनि या आचार्य का नायकत्त्वकाल सामान्य रूप से ३०-३५ वर्ष माना जाता है, किन्तु कोईकोई मुनि और आचार्य दीर्घजीवी भी होते हैं, इसी कारण स्वाभाविक रूप से उनका नायकत्त्वकाल सामान्य से कुछ अधिक अर्थात् ४०-४५ वर्ष का होता रहा। अत: वि०सं० की १५वीं शताब्दी के तृतीय चरण में भी इन्हीं कमलप्रभसूरि का विद्यमान होना असम्भव नहीं लगता। इसलिए उक्त प्रतिमालेख (वि०सं० १५२०) में उल्लिखित हरिभद्रसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि उपरोक्त कालिकाचार्यकथा के प्रतिलेखन की दाताप्रशस्ति (लेखनकाल वि०सं० १४६१-१४७६) में उल्लिखित कमलप्रभसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं।
श्री अगरचन्द नाहटा ने अपनी सिरोही यात्रा के समय वहाँ स्थित मडाहडगच्छीय उपाश्रय में रहने वाले एक महात्मा-(गृहस्थ कुलगुरु) से ज्ञात इस गच्छ के मुनिजनों की एक नामावली प्रकाशित की है, जो इस प्रकार है: १. चक्रेश्वरसूरि
१६. उदयसागरसूरि २. जिनदत्तसूरि
१७. देवसागरसूरि ३. देवचन्द्रसूरि
१८. लालसागरसूरि ४. गुणचन्द्रसूरि
१९. कमलसागरसूरि ५. धर्मदेवसूरि
२०. हरिभद्रसूरि ६. जयदेवसूरि
२१. वागसागरसूरि पूर्णचन्द्रसूरि
२२. केशरसागरसूरि ८. हरिभद्रसूरि
२३. भट्टारकगोपालजी
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