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अध्याय-४ में उत्तीर्ण ऐतिहासिक प्रशस्ति की रचना की गयी ।१४ जयमंगलसूरि द्वारा रचित कविशिक्षा, भट्टिकाव्यवृत्ति, महावीरजन्मभिषेकभास आदि कृतियां भी मिलती हैं ।१५ इनके शिष्य सोमचन्द्र ने वि० सं० १३२९/ई० सं० १२७३ में वृत्तरत्नाकर पर वृत्ति की रचना की ।१६ जयमंगलसूरि के एक अन्य शिष्य अमरचन्द्र के प्रशिष्य ज्ञानकलश ने ईस्वी सन् की चौदहवीं शताब्दी के मध्य सन्देहसमुच्चय की रचना की ।१७ रामचन्द्रसूरि की शिष्य परम्परा इस प्रकार निश्चित होती है :
वादिदेवसूरि
पूर्णदेवसूरि
रामचन्द्रसूरि
जयमंगलसूरि
अमरचन्द्रसूरि
सोमचन्द्र (वि० सं० १३२९ में वृत्तरत्नाकरवृत्ति के कर्ता)
मुनि धर्मघोष
मुनि धर्मतिलक मुनि ज्ञानकलश (ई० स० १४वीं शती के मध्य सन्देहसमुच्चय के कर्ता)
वादिदेवसूरि के सातवें शिष्य जयप्रभ और ११वें शिष्य गुणचन्द्र द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही कोई प्रतिमालेखादि ही किन्तु जयप्रभ के शिष्य रामभद्रसूरि द्वारा रचित प्रबुद्धरोहिणेय१८ नाटक और कालकाचार्यकथा१९ नामक कृतियां मिलती हैं । इसका समय विक्रमसम्बत् की १३वीं शती का उत्तरार्ध माना जाता है। ___ संघवी पाड़ा, पाटण में संरक्षित उत्तराध्ययनसूत्र२० की वि० सं० १३८१ में लिखी गयी प्रति में लेखक महीचन्द्र को वादिदेवसूरि की परम्परा में हुए रामभद्रसूरि का शिष्य कहा गया हैं । जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं रामभद्रसूरि का समय विक्रम संवत् की तेरहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध सुनिश्चित है, ऐसी स्थिति में महीचन्द्र के गुरु रामभद्रसूरि
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