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बृहद्गच्छ का इतिहास और जयप्रभसूरि तथा वादिदेवसूरि के प्रशिष्य रामभद्रसूरि को एक ही व्यक्ति मानने में बाधा उत्पन्न होती है क्योंकि दोनों के मध्य लगभग १०० वर्षों का दीर्घ समयान्तराल है । यह भी संभव है कि वि० सं० १२८२ की जगह भूल से उत्तराध्ययनसूत्र का प्रतिलिपिकाल उक्त पुस्तक में १३८१ छप गया हो । यदि यह संभावना सही है तो दोनों रामभद्रसूरि एक व्यक्ति माने जा सकते हैं, किन्तु इस बात का सही निर्णय तो संघवी पाड़ा की उत्तराध्ययनसूत्र की महीचन्द्रमुनि द्वारा लिखित प्रति को देख कर ही किया जा सकता है ।
वादिदेवसूरि
जयप्रभसूरि
रामभद्रसूरि (प्रबुद्धरोहिणेय नाटक तथा कालकाचार्यकथा के
रचनाकार) वादिदेवसूरि के ८वें शिष्य पद्मचन्द्रगणि द्वारा वि०सं० १२१५ वैशाख सुदि १० मंगलवार को प्रतिष्ठापित नेमिनाथ और शांतिनाथ की प्रतिमायें प्राप्त हुई है। वर्तमान में ये पद्मप्रभ जिनालय, नाडोल में है। मुनि जिनविजय जी ने इन लेखों की वाचना दी है, २१ जो निम्नानुसार हैं : (१) संवत् १२१५ ॥ वैशाख सुदि १० भौमे वीसाडास्थाने श्रीमहावीर चै(त्ये
समु) दा(२) य सहितैः देवणाग नागड जोगडसुतैः देम्हाज धरण
जसचंद्र ज(३) सदेव जसधवल जसपालैः श्रीनेमिनाथबिं कारित।।
बृह(द्गच्छी)य श्रीमद्देवसूरिशिष्येण पं० पद्मचन्द्रगणिना प्रतिष्ठितं।।
नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख (१) संवत् १२१५ वैशाख सुदि १० भौमे वीसाडास्थाने
श्रीमहावीरचैत्ये समुदायस
(४)
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