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अध्याय-४
(२) हितैः देवणाग नागड जोगडसुतैः देम्हाज धरण जसचंद्र जसदेव।। (३) जसधवल जसपालैः श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहद् - (४) च्छीय श्रीमन्मुनिचंद्रसूरिशिष्य श्रीमद्देवसूरिविनयेन पाणिनीय पं० पद्मचं. (५) द्रगणिना यावद्दिवि चंद्ररवी स्यातां धर्मो जिनप्रता तोस्ति ताव (ज्जी) यादेत(६) (ज्जि) न युगलं वीरजिनभुवने।।
शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वादिदेवसूरि के नवे शिष्य पद्मप्रभसूरि से नागपुरीयतपागच्छ अस्तित्त्व मे आया।२२ इनके द्वारा रचित भुवनदीपक अपरनाम ग्रहभावप्रकाश नामक कृति प्राप्त होती है।२३
___ दसवें शिष्य महेश्वरसूरि द्वारा पाक्षिकसप्तति पर रची गयी सुखप्रबोधिनी वृत्ति प्राप्त होती है ।२४
बारहवें शिष्य महेन्द्रप्रभ द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु उनके शिष्य प्रद्युम्नसूरि द्वारा रचित वादस्थल नामक कृति प्राप्त होती है।२५ इनके शिष्य मानदेव का वि०सं० १३१० के लेख में और प्रशिष्य जयानन्द का वि०सं० १३०५ के गिरनार के शिलालेख में नाम मिलता है।२६
तेरहवें शिष्य शालिभद्रसूरि ने वि०सं० १२४१ में भरतेश्वरबाहुबलिरास२७ की रचना की।
वि०सं० १२८८-१३०७ के मध्य प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं२८ पर प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में पद्मदेवसूरि का नाम मिलता है। इन लेखों में पद्मदेवसूरि के गुरु का नाम पूर्णभद्रसूरि बताया गया है जो वादिदेवसूरि के संतानीय (शिष्य) थे ।
उक्त विवरण को तालिका के रूप में निम्नप्रकार से रखा जा सकता है – द्रष्टव्यवादिदेवसूरि के शिष्य परम्परा की विस्तृत तालिका -
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