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रत्नाकरावतारिक (प्रमाणनय तत्त्वा लोक की टीका) शांतिनाथचरित
शीलबत्तीसी
शीलबावनी
श्रावकधर्मकुलक, गाथा ५७
बृहद्गच्छ का इतिहास रत्नप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, जिनरत्नकोश, पृ० २६७. मुनिभद्रसूरि (गुणभद्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १४१०, प्रकाशित-यशोविजय जैनग्रन्थमाला, वाराणसी वीर सं० २४३७. मुनि मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर,
जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. परिषदपत्रिका, वर्ष ६, अंक ४, पृ० ९४-१०१ पर प्रकाशित. । वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), प्राकृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, लिम्बडी भंडार, साध्वी महायशाश्रीजी, संपा०- प्रमाणनयतत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९. हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत,
जैनग्रन्थावली, पृ० २४०, जिनरत्नकोश, पृ० ३९०, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३४७. वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, साध्वी महायशाश्रीजी, पूर्वोक्त, भूमिका, पृ० १८-१९. मुनि मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य) मरु-गूर्जर, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे.
श्रेयांसनाथचरित्र
संसारोदिग्नमनोरथकुलक
सत्यकीचौपाई, पद्य ४४६
सवैया
वही.
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