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तृतीय अध्याय में इस गच्छ के प्रमुख मुनिजनों और इस गच्छ से उद्भूत विभिन्न गच्छों का उल्लेख है । चतुर्थ अध्याय में आचार्य वादिदेवसूरि और उनके विशाल शिष्य-प्रशिष्य सन्तति की संक्षेप में चर्चा है । पंचम अध्याय में बृहद्गच्छीय समस्त अभिलेखीय साक्ष्यों को एक सारिणी के रूप में प्रस्तुत करते हुए उनसे प्राप्त विभिन्न मुनिजनों की गुरु-परम्परायें प्रस्तुत की गयी हैं । ६ठे अध्याय में बृहद्गच्छीय मुनिजनों के साहित्यावदान को एक तालिका के रूपमें प्रस्तुत किया गया है । सातवें और अन्तिम अध्याय में बृहद्गच्छ से उद्भूत विभिन्न गच्छों का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत है । पुस्तक के अन्त में दो परिशिष्ट भी दिये गये है। परिशिष्ट प्रथम के अन्तर्गत बृहद्गच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों का मूल पाठ और द्वितीय परिशिष्ट में बृहद्गच्छीय आचार्य जयमंगलसूरि द्वारा रचित चामुण्डा प्रशस्ति लेख की मूल वाचना है और अन्त में सहायक ग्रन्थ सूची दी गयी है ।।
प्रस्तुत शोधकार्य को पूर्ण करने के लिये भारतीय अनुसंधान इतिहास परिषद की ओर से आर्थिक सहायता प्राप्त हुई । पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के पुस्तकालयों से समय-समय पर सहायता प्राप्त हुई । आचार्य मुनिचन्द्रसूरि ने भी विभिन्न दुर्लभ ग्रन्थों को समय-समय पर उपलब्ध करा कर इस कार्य में प्रत्यक्ष सहयोग प्रदान किया है । लेखक अन्त में उन सभी विद्वानों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता है जिनकी अमूल्य कृतियों से इस सन्दर्भ में लाभान्वित हुआ है । आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की प्रेरणा से ॐकारसूरि आराधना भवन, सुरत ने इसके प्रकाशन का भार उठाया तथा किरीट ग्राफिक्स, अहमदाबाद के अधिष्ठाता श्री किरीटभाई और उनके सुपुत्र श्रेणिकभाई और पीयूषभाई ने इसके अक्षर संयोजन एवं मुद्रण की सुचारु रूप से व्यवस्था की, जिसके लिये लेखक उनका हृदय से आभारी है ।
-शिवप्रसाद
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