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अध्याय-५
वादिदेवसूरि
वीरदेवसूरि
अमरप्रभसूरि
कनकप्रभ साहित्यिक साक्ष्यों से ज्ञात वादिदेवसूरि की पूर्वोक्त शिष्य परम्परा और उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों से ज्ञाच उत्तरकाल में हुए उनकी परम्परा के उपरोक्त मुनिजनों का परस्पर किस प्रकार का सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता।
जैसा कि अभिलेखीय साक्ष्यों की सूची में हम देख चुके हैं वि०सं० १२०५ के प्रतिमालेखों में प्रतिष्ठापक जिनभद्रसूरि के गुरु का नाम अभयदेवसूरि और प्रगुरु का नाम बुद्धिसागरसूरि दिया गया है।३. मुनि विशालविजय द्वारा दी गयी उक्त वाचना को यदि प्रमाणिक मानें तो निश्चय ही उक्त प्रतिमा लेखों में उल्लिखित जिनभद्रसूरि के गुरु अभयदेवसूरि को नवाङ्गीवृत्तिकार अभयदेवसूरि (मृत्यु सं० ११३५) से उनके लम्बे समयान्तराल को देखते हुए अलग-अलग व्यक्ति माना जा सकता है। ठीक यही बात उक्त अभिलेख में उल्लिखित अभयदेवसूरि के गुरु बुद्धिसागरसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। द्रष्टव्य अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित तालिका क्रमांक
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___ नाकोड़ा से प्राप्त वि०सं० १५१८ के एक प्रतिमालेख में इस गच्छ के ६ मुनिजनों का नाम मिलताहै।५
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