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अध्याय-३
बृहत्कल्पसूत्रम् वृत्ति, भाग ७, पृ० १७१०. चैत्रगच्छ के सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य - श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास,
खंड-१, पृ० ४३६-५०३. १४-१६. तपागच्छ और उसकी शाखाओं के इतिहास के सन्दर्भ में द्रष्टव्य.
शिवप्रसाद, तपागच्छ का इतिहास, भाग १, वाराणसी २००० ईस्वी. शिवप्रसाद, “तपागच्छ-बृहद्पौशालिक शाखा" निर्ग्रन्थ, तृतीय अंक, अहमदाबाद २००२ ईस्वी,
सम्पा०- एम० ए० ढांकी एवं जीतेन्द्र शाह, हिन्दी खण्ड, पृ० ३२५-३४१. १७. पुहवीचंदचरिय, प्रस्तावना, पृ० २१ एवं प्रशस्ति, पृ० २२१-२२२. १८-१९. पूर्णिमागच्छ और पिप्पलगच्छ के सम्बन्ध में इसी पुस्तक में यथास्थान में विवरण प्रस्तुत
किया गया है । २०. पं० लालचंद भगवानदास गांधी, ऐतिहासिकलेखसंग्रह, पृ० १२९-१३२. २१. चन्द्रप्रभचरित्र की प्रशस्ति
C.D. Dalal Ed. A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandars at.
Patran, pp 252-256. पं० लालचंद भगवानदास गांधी, पूर्वोक्त, पृ० १३३-३४. २२. वही, पृ० १३२.
द्रष्टव्य - तालिका क्रमांक २.
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