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अध्याय
वादिदेवसूरि और उनकी शिष्य - परम्परा
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अब हम आचार्य वादिदेवसूरि के गुरु आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की रचनाओं और उनकी शिष्य-परम्परा पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे, जिनसे बृहद्गच्छ की परम्परा आगे चली ।
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आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की गुरु-परम्परा का प्रारम्भ में ही यथास्थान उल्लेख किया जा चुका है। इनके द्वारा रचित ३० से ज्यादा कृतियों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिनमें से प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं १ :
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देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरणवृत्ति वि०सं० ११६८. सूक्ष्मार्थसार्थशतकचूर्णि वि०सं० ११७०.
अनेकान्तजयपताकाटिप्पण वि०सं० ११७१.
उपदेशपदवृत्ति
ललितविस्तरापंजिका
धर्मबिन्दुवृत्ति (वि०सं० १९८१ से पूर्व ) कर्मप्रकृति- विशेषवृत्ति
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इसके अलावा इनके द्वारा रचित स्वतंत्र कृतियां भी मिलती हैं
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अंगुलसप्तति
आवश्यक (पाक्षिक) सप्तति
वनस्पतिसप्ततिका
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११- प्रभातिस्तुति
१२- शोकहरउपदेशकुलक
१३- सम्यक्त्वोत्पादविधि
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