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________________ अध्याय वादिदेवसूरि और उनकी शिष्य - परम्परा ५ अब हम आचार्य वादिदेवसूरि के गुरु आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की रचनाओं और उनकी शिष्य-परम्परा पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे, जिनसे बृहद्गच्छ की परम्परा आगे चली । - आचार्य मुनिचन्द्रसूरि की गुरु-परम्परा का प्रारम्भ में ही यथास्थान उल्लेख किया जा चुका है। इनके द्वारा रचित ३० से ज्यादा कृतियों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिनमें से प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं १ : १ २ ३ ४ ६ ४ देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरणवृत्ति वि०सं० ११६८. सूक्ष्मार्थसार्थशतकचूर्णि वि०सं० ११७०. अनेकान्तजयपताकाटिप्पण वि०सं० ११७१. उपदेशपदवृत्ति ललितविस्तरापंजिका धर्मबिन्दुवृत्ति (वि०सं० १९८१ से पूर्व ) कर्मप्रकृति- विशेषवृत्ति ७ इसके अलावा इनके द्वारा रचित स्वतंत्र कृतियां भी मिलती हैं १ २ ३ Jain Education International अंगुलसप्तति आवश्यक (पाक्षिक) सप्तति वनस्पतिसप्ततिका For Personal & Private Use Only — ११- प्रभातिस्तुति १२- शोकहरउपदेशकुलक १३- सम्यक्त्वोत्पादविधि www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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