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बृहद्गच्छ का इतिहास प्रशिष्य, राजरत्नसूरि के शिष्य और परम्परा गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं। इस प्रकार इस गच्छ के मुनिजनों का जो वंशवृक्ष बनाता है, वह इस प्रकार है :
सोमरत्नसूरि (वि० सं० १५५१) प्रतिमा लेख(नागपुरीयतपागच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य)
राजरत्नसूरि
चन्द्रकीर्तिसूरि (वि०सं० १६२३ में सारस्वव्याकरणदीपिका के कर्ता, प्रसिद्ध रचनाकार)
रत्नकीर्तिसूरि (वि०सं० १५९६) प्रतिमालेख
मानकीर्तिसूरि हर्षकीर्ति (सारस्वतव्याकरणदीपिका पद्मचन्द्र (इनकी प्रार्थना पर की प्रथमादर्श प्रति के
सारस्वतव्याकरणदीपिका लेखक)
की रचना हुई)
अमरकीर्तिसूरि
महो०देवसुन्दर
शिवराज
भावचन्द्र (गोपालटीका के कर्ता)
__ मुनिधर्म (वि०सं० १६५७ में श्रीपालचरित के प्रतिलिपिकार)
चूंकि नागपुरीयतपागच्छ का वि० सं० १५५१ से पूर्व कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता, अत: चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्तिगत गुर्वावली में आचार्य सोमरत्नसूरि से पूर्ववर्ती हेमरत्नसूरि, हेमसमुद्रसूरि, हेमहंससूरि, पूर्णचन्द्रसूरि आदि जिन मुनिजनों का उल्लेख मिलता है, उन्हें किस गच्छ से सम्बद्ध माना जाये, यह समस्या सामने आती है। इस सम्बन्ध में हमें अन्यत्र प्रयास करना होगा।
तपागच्छीय अभिलेखीय साक्ष्यों में हमें हेमरत्नसूरि (वि० सं० १५३३), हेमरत्नसूरि के गुरु हेमसमुद्रसूरि (वि० सं० १५१७-२८) और हेमसमुद्रसूरि के गुरु तथा पूर्णचन्द्रसूरि के शिष्य हेमहंससूरि (वि० सं० १४५३-१५१३) का उल्लेख प्राप्त होता है। इनका विवरण इस प्रकार है :
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