________________
जयप्रभसूरि (वि०सं० १५१२-१५५१) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख
Jain Education International
१८६
जयभद्रसूरि (वि०सं० १५२५-३४)
प्रतिमालेख
यशस्तिलकसूरि (वि०सं० १५२७-२९) प्रशस्ति में उल्लिखित
भुवनप्रभसूरि (वि०सं० १५५१-१५७२) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख
जयमेरुसूरि (वि०सं० १५५१) प्रशस्ति
कमलप्रभसूरि (वि०सं० १५८२) प्रतिमालेख
मुनिराजसुन्दरसूरि (वि०सं० १५६६)प्रशस्ति
मुनिवीरकलश (वि०सं० १५५५ में स्नात्रपंचाशिका)
मुनिरत्नमेरुसूरि (वि०सं० १५७४ में आदिनाथमहाकाव्य के के प्रतिलिपिकार)
कमलसंयमसूरि (वि०सं० १५५३ में इनके सानिध्य में पाक्षिकस्बात्रअवचूरि रचनाकार को प्रतिलिपि की गयी)
माणिक्यसूरि
पुण्यप्रभसूरि (वि०सं० १५९०-१६११) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख
विद्याप्रभसूरि (वि०सं० १६२४) प्रतिलेखन प्रशस्ति
For Personal & Private Use Only
ललितप्रभसूरि (द्वितीय) (वि०सं० १६५०-१६७७) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख
विनयप्रभसूरि (वि०सं० १७१४-१७२२) प्रतिलेखन प्रशस्ति
कीर्तिरत्नसूरि (वि०सं० १७१४) प्रतिलिपिप्रशस्ति
मुनिहेमराजसूरि (वि०सं० १६८९) प्रतिलेखनप्रशस्ति
महिमांप्रभसूरि (वि०सं०१७३६-१७६८) प्रशस्ति एवं प्रतिमालेख
सहजरत्लसूरि (वि०सं० १७६१) प्रतिलिपिप्रशस्ति
भावप्रभसूरि (वि०सं० १७८३-१७९१)
प्रशस्ति
भावरत्नसूरि (वि०सं० १७६२-१७९२)
प्रशस्ति
मुनिलाल (वि०सं० १७६७-१७९१)
प्रशस्ति
बृहद्गच्छ का इतिहास
www.jainelibrary.org
मुनिज्योतिरत्न