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________________ अध्याय - १ बृहद्गच्छ के इतिहास के स्रोत किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय के इतिहास के अध्ययन के स्रोत के रूप में साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों का अध्ययन अपरिहार्य है। प्राक् मध्य युग में निर्ग्रन्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय में समय-समय पर उद्भूत विभिन्न गच्छों और उनसे निःशृत (उत्पन्न) शाखाओं-उपशाखाओं के इतिहास के अध्ययन के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती है। गच्छों के इतिहास से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम ग्रन्थ या पुस्तक प्रशस्तियाँ और द्वितीय विभिन्न गच्छों के मुनिजनों द्वारा समय-समय पर रची गयी अपने-अपने गच्छों की पट्टावलियाँ। प्रशस्तियाँ पुस्तकों के साथ सम्बन्ध रखने वाली प्रशस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। इनमें से एक तो वे हैं जो ग्रन्थों के अन्त में उनके रचयिताओं द्वारा बनायी गयी होती हैं। इनमें मुख्य रूप से रचनाकार द्वारा गण-गच्छ तथा अपने गुरु-प्रगुरु आदि का उल्लेख होता है। किन्हीं प्रशस्तियों में रचनाकाल और रचनास्थान का भी निर्देश होता है। किसीकिसी प्रशस्ति में तत्कालीन शासक या किसी बड़े राज्याधिकारी का नाम और अन्यान्य ऐतिहासिक सूचनायें भी मिल जाती हैं। कुछ प्रशस्तियाँ छोटी-दो-चार पंक्तियों की और कुछ बड़ी होती हैं। इन प्रशस्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न गण-गच्छों के जैनाचार्यों की गुरुपरम्परा, उनका समय, उनका कार्यक्षेत्र और उनके द्वारा की गयी समाजोत्थान एवं साहित्य सेवा का संकलन कर उनकी परम्पराओं का अत्यन्त प्रामाणिक इतिहास तैयार किया जा सकता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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