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परिशिष्ट
चामुंडा प्रशस्ति लेख का मूल पाठ*
चामुण्डा प्रशस्ति लेख
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ओं।। श्वेतांभोजातपत्रं किमु गिरि दुहितुः स्तटिन्या गवाक्षः किंवा सौख्यासनं वा महिम मुख महासिद्ध देवी गणस्य। त्रैलोक्यानंदहेतोः किमदितमनघं श्लाघ्य नक्षत्र मुच्चै शंभोर्भालस्थलेंदुः सुकृति कृतनुतिः पातु वो राज लक्ष्मीं ॥ १ ॥ ईशस्यांकावनिरनुपमानंद संदोह मूला चंचद्वासोंचल दलमयी भूषण प्रौढ पुष्पा । सल्लावण्योदय सुफलिनी पार्व्वती प्रेम वल्ली लक्ष्मी पुष्णात्वनु दिन मति व्यक्त भक्त्या नतानां ॥ २ ॥ विकट मुकुट माद्यत्तेजसा व्योम्नि दैत्यानिव भुवि मणिमय्या मेखलायाः क्वणेन । अनणुरणित लीला हंसकेस्त्रासयंती फणि पति भुवनांतश्चंडिका वः श्रियेस्तु || ३ || श्री मद्वत्समहर्षि हर्ष नयनो भूतां पूर प्रभा पूर्व्वेर्व्वीधर मौलि मुख्य शिखरालंकार तिग्मद्युतिः । पृथ्वीं त्रातु मपास्त दैत्य तिमिरः श्री चाहमानः पुरा वीरः क्षीर समुद्र सोदर यशो राशि प्रकाशो भवत् ॥४॥ रत्ना वल्यामिव नृपततो तत्क्रमे विश्रुतायां घर्म्मस्थान प्रकर करण प्राप्त पुण्योत्सवायां । श्री नदूलाधि पतिर भव ल्लक्ष्मणो नाम राजा लक्ष्मीलीला सदन सदृशाकार शाकंभरींद्रः ।। ५ ।। आपाताला त्समर जलधिं मदरो यस्य खड्गो मुष्टिव्याजाद्भुजग पतिना शृंखले नावबद्धः । निर्म्मथ्योच्चैः सपदि कमलां लीलयोद्धृत्यमत्तश्चक्रे नृत्तं रणित कटक: केलि कंपच्छलेन ।। ६ ।। तस्माद्धि माद्रि भवनाय यशो पहारी श्रीशोभितो जनि नृपो स्य तनूद्भवोथ । गांभीर्यधैर्य सदनं बलि राज देवो यो मुञ्जराजबल भंगमचीकरतं ॥ ७ ॥ साम्राज्याशा क रेणुं रिपु नृपति गज स्तोम माक्रम्य जहे यत्खङ्गो गंध हस्ती समर रस भरे विंध्य शैलाय माने । मुक्ता शुक्तींदु कांतोज्ज्वल रुचिषु लसत्कीर्त्तिरेवातटेषु प्रौढ़ाने
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F. Keilhorn, “Sundha Hill Inscription of Cacigadlva, Vikram Samvat 1319.” Epigraphia Indica, Vol IX, 1907-08, p. 79, पूरनचन्द्र नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग-१, लेखांक ९४३-४४.
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