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अध्याय-६
१०७ अनेकान्तजयपताकाटिप्पण मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्र-नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत,
देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, कंडिका,
३३२-३४. अमरसेनवयरसेनचउपइ, मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य) म०गू०, देसाई, जैनगूर्जरपद्य ४०८
कविओ, भाग-२, नवीन संस्करण, पृ० ५५-६५. आख्यानकमणिकोश देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि (आनन्दसूरि के शिष्य)
प्राकृत, वि० सं० १२वीं शती पूर्वार्ध, प्राकृत टेक्स्ट
सोसायटी वाराणसी से १९६२ ई० में प्रकाशित. आख्यानकमणिकोशवृत्ति आम्रदेवसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य) प्राकृत, वि० सं०
११९१, आख्यानकमणिकोश के साथ प्रकाशित. आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणवृत्ति हरिभद्रसूरि (जिनदेवसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि० सं० अपरनाम षट्शीतिटीका ११७२,
C.D. Dalal, Ed. Descriptive Catalogue of MSS In . the Jain Bhandars at Pattan, Part-1, p. 21, Muni Punya Vijaya, Ed. New Catalogue of Sanskrit & Prakrit MSS : Jesalmer Collection. p. 63-64. जिनरत्नकोश, पृष्ठ २१, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त
इतिहास, कंडिका-३४७. आदिनाथचरित्र
वर्धमानसूरि (अभयदेवसूरि के शिष्य) (प्राकृत), वि० सं० ११६०, जिनरत्नकोश, पृ० ३०१. C.D. Dalal, Ed. A Descriptive Catalogue Mss in
the Jain Bhandars at Pattan, Part-I, p. 350. आवश्यक (पाक्षिक) सप्ततिका मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि-नेमिचंद्रसूरि के शिष्य),
संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२-३४, Petarson III, p. 243; जैन ग्रन्थावली, पृ० १४३; जिनरत्नकोश, पृ० २४१.
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