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बृहद्गच्छ का इतिहास
उत्तराध्ययनसूत्र (सुखबोधावृत्ति) देवेन्द्रगणि अपरनाम नेमिचन्द्रसूरि ( आनन्दसूरि के
शिष्य), संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका २९७. जिनरत्नकोश, पृ० ३२७
उपदेशकुलक
उपदेशपदव्याख्या
उपदेशमालादोघट्टीवृत्ति
उपधानस्वरूप
कलिकुंडपार्श्वस्तवनम्
कर्मप्रकृतिविशेषवृत्ति
कलिकुण्डपार्श्वनाथ यन्त्रस्तवन,
श्लोक १०
वादिदेवसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), अपभ्रंश, साध्वी महायशाश्रीजी, संपादिका प्रमाणनयतत्त्वालोक,
भूमिका, पृ० १८-१९.
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मुनिचन्द्रसूरि ( यशोभद्रसूरि - नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १९७४, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका- ३३२-३४, जिनरत्नकोश, पृ० ४८.
रत्नप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३२८, देसाई, पूर्वोक्त, कंडिका ६३३, जिनरत्नकोश, पृष्ठ ४९-५० C.D. Dalal, Ibid, p. 206, 323. वादिदेवसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), जिनरत्नकोश, पृ०५३.
वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, साध्वी महायशाश्रीजी, संपा०- प्रमाणनयतत्त्वालोक, भूमिका, पृ० १८-१९.
मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि - नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) संस्कृत, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२-३४, जैनग्रन्थावली, पृ० ११५.
वादिदेवसूरि ( मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य ), संस्कृत,
मुनि चतुरविजय, संपा० जैनस्तोत्रसंदोह, भाग-१, पृ० ११८.
कीर्तिधरसुकोशलसम्बन्ध, पद्य ४३१ मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु - गूर्जर.
जैन गूर्जर कविओ, नवीन संस्करण, भाग २, पृ०,
भाग
३, पृ०३६२ और आगे.
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