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________________ अध्याय-७ १८३ कमलप्रभसूरि के पट्टधर पुण्यप्रभसूरि इनके उपदेश द्वारा प्रतिष्ठापित २ प्रतिमायें मिलती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है :वि०सं० १६०८ वैशाख सुदि १३ शुक्रवार बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १२४. वि०सं० १६१० फाल्गुन वदि २ सोमवार मुनि विशालविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ३४८. विद्याप्रभसूरि के पट्टधर ललितप्रभसूरि ___ इनके उपदेश द्वारा प्रतिष्ठापित एक प्रतिमा मिली है, जिस पर वि०सं० १६५४ का लेख उत्कीर्ण है : वि०सं० १६५४ माघ वदि १ रविवार बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १०१. महिमाप्रभसूरि इनके उपदेश से प्रतिष्ठित वि०सं० १७६८ की एक प्रतिमा मिली है : वि०सं० १७६८ वैशाख सुदि ६ गुरुवार बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ३३२. ___ उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा पूर्णिमापक्ष की प्रधानशाखा के जिन मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं, उनमें जयप्रभसूरि के शिष्य जयभद्रसूरि को छोड़कर शेष सभी नाम पुस्तकप्रशस्तियों में भी मिलते हैं, साथ ही उनका पूर्वापर सम्बन्ध भी सुनिश्चित किया जा चुका है। श्री देसाई द्वारा दी गयी पूर्णिमागच्छ प्रधानशाखा की पट्टावली में सर्वप्रथम पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक चन्द्रप्रभसूरि का उल्लेख है। इसके बाद धर्मघोषसूरि एवं उनके बाद समुद्रघोषसूरि का नाम आता है। उक्त पट्टावली के अनुसार समुद्रघोषसूरि के शिष्य सुरप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा का आविर्भाव हुआ। वि०सं० १२५२ में पूर्णिमागच्छीय मुनिरत्नसूरि द्वारा रचित अममस्वामिचरित्रमहाकाव्य की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता सुरप्रभसूरि का उल्लेख किया है।२ पट्टावली में सुरप्रभसूरि के बाद जिनेश्वरसूरि, भद्रप्रभसूरि, पुरुषोत्तमसूरि, देवतिलकसूरि, रत्नप्रभसूरि, तिलकप्रभसूरि, ललितप्रभसूरि, हरिप्रभसूरि आदि ८ आचार्यों का पट्टानुक्रम से जो उल्लेख है, उनके बारे में अन्यत्र कोई सूचना नहीं मिलती। हरिप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लेख मिलता है। चूँकि जयप्रभसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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