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________________ १५८ बृहद्गच्छ का इतिहास से प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों की चर्चा की जा सकती है। उक्त साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। अध्ययन की सुविधा हेतु सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों और तत्पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत है-. दर्शनशुद्धि यह पूर्णिमागच्छ के प्रकटकर्ता आचार्य चन्द्रप्रभसूरि की कृति है। इनकी दूसरी रचना है – प्रमेयरत्नकोश। इन रचनाओं में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख नहीं किया है, परन्तु इनके प्रशिष्य विमलगणि ने अपने दादागुरु की रचना पर वि०सं० ११८१/ई० सन् ११२५ में वृत्ति लिखी, जिसको प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है। वह इस प्रकार है : सर्वदेवसूरि जयसिंहसूरि चन्द्रप्रभसूरि (दर्शनशुद्धि के रचनाकार) धर्मघोषसूरि विमलगणि (वि०सं० ११८१/ई० सन् ११२५ में दर्शनशुद्धिवृत्ति के रचनाकार) दर्शनशुद्धिबृहवृत्ति - पूर्णिमागच्छीय विमलगणि के शिष्य देवभद्रसूरि ने वि०सं० १२२४/ई० सन् ११६८ में अपने गुरु की कृति दर्शनशुद्धिवृत्ति पर बृहवृत्ति की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है२: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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