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________________ अध्याय-७ वीरसिंहसूरि वीरचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२९-१४३८) शालिभद्रसूरि (वि०सं० १४४०-१४८३) - वीरभद्रसूरि उदयरत्नसूरि उदयचन्द्रसूरि (वि०सं० १४६८) (वि०सं० १४८३) (वि०सं० १५०८-१५२७) ___ सागरचन्द्रसूरि देवरत्नसूरि (वि०सं० १५२०-१५३२) (वि०सं० १५४९-१५७२) जैसा कि लेख के प्रारम्भ में कहा जा चुका है इस गच्छ से सम्बद्ध मात्र दो साहित्यिक साक्ष्य मिलते हैं। इनमें से प्रथम है रामकलशसूरि के शिष्य देवसुन्दरसूरि द्वारा रचित कयवन्नाचौपाई३। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने केवल अपने गुरु और रचनाकाल तथा गच्छ आदि का ही उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : संवत पनर चोराण सार, मागसर वदि सातमि गुरुवार। पूष्य नक्षत्र हूंतो सिध जोग, कयवन्नानी कथानो भोग।। श्रीजीराउलिगच्छ गुरु जयवंत, श्री श्रीरामकलशसूरि गुणवंत। वाचक देवसुन्दर पभणंति, भणइ गुणइ ते सुख लहंति।। इनके द्वारा रची गयी एक अन्य कृति भी मिलती है जिसका नाम है आषाढ़भूतिसज्झाय (रचनाकाल वि०सं० १५८७)। वि०सं० १६०२ में लिखी गयी तपागच्छीयश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति की प्रतिलिपि की प्रशस्ति५ में भी इस गच्छ का उल्लेख है : इत श्री तपग. श्राद्ध प्रतिक्रमण ...... वृत्तौ शेषाधिकारः पंचमः। समाप्ता चेयमर्थदीपिकानाम्नी श्राद्धप्रतिक्रमण-टीका । ग्रन्थाग्रन्थ ६६४४॥ श्री सं० १६०२ श्रावण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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