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________________ परिशिष्ट - २ बृहद्गच्छीय अभिलेखों का मूल पाठ अथवा बृहद्गच्छीय लेख संग्रह । बृहद्गच्छीय लेख समुच्चय । संस्कृति के विकास में जितना महत्त्वपूर्ण स्थान इतिहास का है, ठीक उसी प्रकार उतना ही महत्त्व इतिहास में साक्ष्यों का है । प्रामाणिकता से अभाव में इतिहास धीरेधीरे किन्वदन्तियों का रूप ग्रहण कर लेता है । ___इतिहास के साक्ष्यों की विभिन्न कड़ियों में एक है शिलाओं और मूर्तियों पर उत्कीर्ण लेख । जैन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के स्रोत हैं । प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से अनेक महत्त्वपूर्ण बिन्दु स्वतः प्रामाणित हो जाते हैं । उनके निर्माता उपासकों का समय, उनकी ज्ञाति, उनका गोत्र तथा आचार्यों एवं पदवीधारी मुनिजनों का काल-निर्धारण होने के साथ-साथ गुरु-परम्परा भी निश्चित हो जाती है । उनके गच्छ का भी निर्धारण होने के साथ-साथ गुरु-परम्परा भी निश्चित हो जाती है । कुछ लेखों में उस काल के राजाओं तथा ग्रामों-नगरों के नामोल्लेख भी प्राप्त होते हैं । कई विस्तृत शिलालेख प्रशस्तियों में उस राजवंश का और उनके निर्माताओं के वंश का भी वर्णन होता है और उनके कार्यकलापों का भी ।। २०वीं शती के प्रारम्भ से ही जैन परम्परा के शिलालेखों - प्रतिमालेखों के संकलन को महत्त्व देना प्रारम्भ हुआ और पूरनचंद नाहर, मुनि जिनविजय, आ० बुद्धिसागरसूरि, आ० विजयधर्मसूरि, मुनि जयन्तविजय, मुनि विशालविजय, आ० यतीन्द्रसूरि, महो० विनयसागर, अगरचन्द नाहटा-भवरलाल नाहटा, मुनि कान्तिसागर, नन्दलाल लोढा, प्रवीणचंद्र परीख आदि विभिन्न विद्वानों में अत्यंत परीश्रम के साथ इसे संकलित और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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