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________________ बृहद्गच्छ का इतिहास अन्य गच्छों की जहाँ समय-समय पर रची गयी विभिन्न पट्टावलियाँ मिलती हैं। वहीं बृहद्गच्छ की मात्र एक पट्टावली मिलती है और वह भी १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण के प्रारम्भ में रची गयी है। इसके रचनाकार हैं मुनिमाल। मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह और मुनि कल्याणविजय द्वारा सम्पादित पट्टावलीपरागसंग्रह में यह प्रकाशित है। अभिलेखीय साक्ष्य ४ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं १. प्रतिमालेख, २. शिलालेख । - धातु या पाषाण की अनेक जिनप्रतिमाओं के पृष्ठभाग या आसानों पर लेख उत्कीर्ण होते हैं। इसी प्रकार विभिन्न तीर्थस्थलों पर निर्मित जिनालयों से अनेक शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। इन लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक या प्रतिमा की प्रतिष्ठा हेतु प्रेरणा देने वाले मुनि का नाम होता है तो किन्हीं - किन्हीं लेखों में उनके पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों के भी नाम मिल जाते हैं। किन्हीं - किन्हीं लेखों में तत्कालीन शासक का भी नाम मिल जाता है। इतिहास लेखन में उक्त साक्ष्यों का बड़ा महत्त्व है। शिलालेखों में सामान्य रूप से जिनालयों के निर्माण, पुनर्निर्माण, जीर्णोद्धार आदि कराने वाले श्रावक का नाम, उसके कुटुम्ब एवं जाति आदि का परिचय, प्रेरणा देने वाले मुनिराज का नाम, उनके गच्छ का नाम, उनकी गुरु-परम्परा में हुए पूर्ववर्ती दोचार मुनिजनों का नाम, शासक का नाम, तिथि आदि का सविस्तार परिचय दिया हुआ होता है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध अभिलेखों के विभिन्न संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनका विवरण इस प्रकार है जैनलेखसंग्रह, भाग १ - ३, सम्पा० १९२९ ई०. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग १ -२, सम्पा० भावनगर १९२१ ई०. प्राचीनलेखसंग्रह, सम्पा० यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, Jain Education International पूरनचन्द नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, - मुनि जिनविजय, जैन आत्मानन्द संभा, आचार्य विजयधर्मसूरि, सम्पा० भावनगर १९२९ ई०. For Personal & Private Use Only - मुनि विद्याविजय, www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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