SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय-७ २०५ अन्त : दान उपर कइवन्न चोपई, संवर पनर त्रिसठे थई, भाद्र वदि अठमी तिथि जाण, सहस किरण दिन आणंद आणि। पद्मसागरसूरि इम भणंत, गुणे तिहिं काज सरंति, ते सवि पामे वंछित सिद्धि, घर नीरोग घरे अविचल रिद्धि। यद्यपि उक्त ग्रन्थकार और उनके गुरु का अन्यत्र कोई उल्लेख नहीं मिलता और यह रचना भी सामान्य कोटि की है फिर भी मडाहडगच्छ से सम्बद्ध होने के कारण इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से इसे महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। विक्रम सम्वत् की सत्रहवीं शताब्दी के द्वितीय-तृतीय चरण में इस गच्छ में सारंग नामक एक विद्वान् हुए हैं, जिनके द्वारा रचित कविविल्हणपंचाशिकाचौपाई (रचनाकाल वि०सं० १६३९), मुंजभोजप्रबन्ध (रचनाकाल वि०सं० १६५१), किसनरूक्मिणीवेलि पर संस्कृतटीका (रचनाकाल वि०सं० १६७८) आदि कृतियाँ प्राप्त होती हैं।१५ इनके गुरु का नाम पद्मसुन्दर और प्रगुरु का नाम धर्मसुन्दर था। मडाहडगच्छ से सम्बद्ध अब तक उपलब्ध यह अन्तिम साहित्यिक साक्ष्य कहा जा सकता है। अभिलेखीय साक्ष्यों से इस गच्छ की रत्नपुरीयशाखा और जाखडियाशाखा का अस्तित्व ज्ञात होता है। इनका विवरण निम्नानुसार है - रत्नपुरीयशाखा- जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है, रत्नपुर नामक स्थान से यह अस्तित्व में आयी प्रतीत होती है। इस गच्छ से सम्बद्ध १४ प्रतिमालेख प्राप्त हुए हैं जो वि०सं० १३५० से वि० सं० १५५७ तक के हैं। इन लेखों में धर्मघोषसूरि, सोमदेवसूरि, धनचन्द्रसूरि, धर्मचन्द्रसूरि, कमलचन्द्रसूरि आदि का उल्लेख मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है : धर्मघोषसूरि के पट्टधर सोमदेवसूरि इनके द्वारा वि०सं० १३५० में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। मुनि विद्याविजयजी१६ ने इसकी वाचना की है, जो निम्नानुसार है : ___ सं० १३५० वर्षे माह वदि ९ सोमे ...... कानेन भ्रातृरा ...... निमित्तं श्रीपार्श्वनाथबिंब का०प्र० मड्डाहडगच्छे रत्नपुरीय श्रीधर्मघोषसूरिपट्टे श्रीसोमदेवसूरिभिः।। वर्तमान में यह प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, पूना में है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004033
Book TitleBruhad Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2013
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy