Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूने या-अप्तस्कृत जीवित मा प्रमादयेः, जरोपनीतस्य हु नास्ति त्राणम् ।
एव विजानीहि जनाः प्रमत्ताः, किं नु विदिस्रा अयताः ग्रहीष्यन्ति ॥१॥ टीका-हे शिष्य ! जीवितम् इदमायुः, असंस्कृत संस्कारहीन वर्धयितुमशक्यम् । द्वा-असस्कृतम् असधेयम् अस्ति, अतो मा प्रमादये =प्रमाद मा कुरु । 'हु' निश्चयेन जरोपनीतस्य जरया-वृद्धत्वेन उपनीत:-मरणसमीप मापितस्तस्य पुरुपस्य ण-शरण नास्ति, यद्वा-जरामुपनीत:-स्वकर्मणा जरा प्रापितस्तस्य त्राणं-शरण स्ति, येन जराऽपनीयते तत् नाण नास्ति । तथा जराजर्जरितदेहयतस्तादशी मकरणशक्तिर्न भवति । किंच-एव अक्ष्यमाण विजानीहि-प्रमत्ता:पमादान्तः, हिंसा हिंसकाः, अयताः अजितेन्द्रियाः, तत्तत्पापस्थानेभ्योऽनुपरता वा, ____ अन्वयार्थ हे शिष्य ! (जीविय असखय-जीवित असस्कृतम्) पह आयु असस्कृत है-सस्कार हीन है-इसका वढाना अशक्य है अथवा-असख्येय है-टूटने पर साधने योग्य नहीं है, अतः (मा पमापए मा प्रमादयेः) धर्म में प्रमाद मत करो । “हु" निश्चय से (जरोवणी पस्स-जरोपनीतस्य ) जरा से मरण के समीप पहुँचाये गये जीव का (ताण-त्राणम् ) शरण (नत्थि-नास्ति) कोई नहीं है, अथवा ऐसा कोई नहीं है जो अपने कर्म के द्वारा जराके पास पहुंचे हुए जीव को उस जरा से बचा सके । तथा जरा से जिसका शरीर जर्जरित हो रहा है ऐसे जीव की ऐसी भी शक्ति नहीं होती है, जो वह उस अवस्था में धर्म कर सके । (पमत्ते जणे-प्रमत्ता जनाः ) जो मनुष्य प्रमादी होते हैं, वे (विहिंसा-विहिंस्रा) स्वपर के घातक होते हैं (अजयाअयताः) इन्द्रियों को वश में नहीं करनेवाले होते हैं, अथवा उनर
मन्वयार्थ-शिष्य ! जीविय असखय-जीवित असा तम् मामायुष्य અસ સ્કૂત છે તેને વધારવું શકય નથી તેમજ તુટેલુ આયુષ્ય સાધી શકાતુ नधी, भाथीमा पमायए-मा प्रमादये प्रभाहन ४२। “हु"निश्चयथा जरोवणीयस्समरोपनीतस्य वृद्धावस्याथी भरघुनी सभी५ पलाया नु ताण-त्राणम् શરણુ ન—િનારિત કેઈ નથી અથવા એવો કેઈ સમર્થ નથી કે જે પિતાના કર્મ દ્વારા ઘડ૫ણને આરે પહોચેલા જીવને એ વૃદ્ધાવસ્થાથી બચાવી શકે તથા વૃદ્ધાવસ્થાને કારણે જેનું શરીર જર્જરિત થઈ રહ્યું છે એવા જીવને એવી શક્તિ ५१ नथी २ही ती तेथे भवस्यामा पर धर्म ४रीश पमत्तेजणे-पमत्ता मना रे मनुष्य प्रमाही राय छे ते विहिंसा-विहिना पाताना मन भीगना बात जाय छे अजया-अयता छन्द्रियो ६५२ ४९ भणी शत नयी तमा