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विवेचन
ग्रन्थ की यथार्थता
पूज्य वाचकवर्य श्रीमद् विनयविजयजी म. ने प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'शान्त सुधारस' रखा है। 'शान्त सुधारस' इस ग्रन्थ का यथार्थ नाम है। दुनिया में कई बार स्वार्थसिद्धि के लिए अयथार्थ औपचारिक (आरोपित) स्तुति भी की जाती है। किसी कंगाल का नाम भी 'अमीरचंद' रख दिया जाता है । परन्तु ग्रन्थकार ने अपने ग्रन्थ के नाम का यथार्थ चयन किया है। इस ग्रन्थ के अन्तर्गत उन्होंने बारह भावनाओं का वर्णन किया है। इन भावनाओं के महत्त्व को बतलाते हुए वे फरमाते हैं कि इन भावनाओं के भावन (चिन्तन) बिना विद्वानों के मन में भी शान्त रस का प्रवाह प्रगट नहीं होता है अर्थात् मन्दजनों की बात तो दूर रही, किन्तु विद्वान् के हृदय में भी जो शान्त रस उत्पन्न होता है, वह इन भावनाओं को ही आभारी है। अतः विद्वज्जनों के लिए भी यदि ये भावनाएँ अत्यन्त अनिवार्य हैं, तो मन्दजनों के लिए तो इनकी उपयोगिता स्वतः सिद्ध हो जाती है। उनको तो बारम्बार अवश्य इन भावनाओं का भावन करना ही चाहिये। इस प्रकार प्रस्तुत गाथा में ग्रन्थ का 'विषय निर्देश' भी हो जाता है ।
यदि
भवभ्रमखेदपराङ्मुखम् ,
यदि च चित्तमनन्तसुखोन्मुखम् । शृणुत तत्सुधियः शुभ-भावनामृतरसं मम शान्तसुधारसम् ॥ ३ ॥
(द्रुतविलम्बितम्।
शान्त सुधारस विवेचन-६