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पद्मपुराणे
करता है पर केवली के समक्ष ली प्रतिज्ञापर उस समय भी दृढ़ रहता है और सीताकी इच्छा के विरुद्ध उसके शरीरपर अँगुली भी नहीं लगाता है। पापका उदय आनेसे रावणकी विवेक शक्ति लुप्त हो जाती है, वह मानके मदमें मत्त हो मन्दोदरी के कान्तासम्मित उपदेशको ठुकराता है और विभीषण-जैसे नीतिज्ञ तथा धर्मज्ञ भाईका तिरस्कार कर उसे लंकासे बाहर जाने के लिए विवश करता है । राम तथा विद्याधरोंकी सेना लंकाको चारों ओरसे घेर लेती है । रावण शान्तिनाथ के मन्दिरमें बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करता है । लक्ष्मणकी प्रेरणा से अनेक विद्याधर लंका में उपद्रव करते हैं पर रावण पर्वतकी तरह स्थिर रहकर बहुरूपिणी विद्या सिद्ध कर उठता है । अन्त में उसका पुण्य उसका साथ नहीं देता है । हाथका सुदर्शनचक्र लक्ष्मण के पास पहुँच जाता है और लक्ष्मणके द्वारा उसकी मृत्यु होती है । रावणके मरते ही रामके जीवनका प्रथमाध्याय समाप्त हो है।
[२] मन्दोदरी
रहता है । उसकी स्त्रीका
विजय पर्वतकी दक्षिण श्रेणीपर असुरसंगीत नामक नगरी में राजा मय नाम हेमवती है । मन्दोदरी उन्हीं की पुत्री है । जब मन्त्रियोंके साथ सलाह कर राजा मय रावण के साथ मन्दोदरी का विवाह करना निश्चित करता है उस समय रावण भीम वनमें ठहरा था । मय मन्दोदरीको साथ ले रावणसे मिलने के लिए जाता है । मन्दोदरीको रूप माधुरी रावणका मन मोहित कर लेती है । विधिपूर्वक दोनोंका विवाह होता है । मन्दोदरी अपनी गुणगरिमाके कारण रावणकी पट्टरानी बनती है । हम देखते हैं कि मन्दोदरी बड़ी प्रतिभाशालिनी विवेकवती स्त्री है । वह रावणको समय- समयपर अनेक हितावह उपदेश देकर सुमार्गवर लाती रही है । जिस प्रकार उफनते दूधमें पानीकी एक अंजलि छोड़ दी जाती है तो उफान शान्त हो जाता है, उसी प्रकार मन्दोदरीके उपदेशने कितनी ही जगह रावणका उफान शान्त किया है । रावण लंका से बाहर गया था इतनेमें खरदूषण रावण की बहन चन्द्रनखाको हर ले जाता है । लंका में वापस आनेपर रावण जब यह समाचार सुनता है तब उसका क्रोध उबल पड़ता है और वह खरदूषणपर चढ़ाई करने के लिए उद्यत होता है । उस समय मन्दोदरीका कोमल कान्त उपदेश रावणके क्रोधको क्षण-भर में शान्त कर देता है | आचार्य रविषेणका वह चित्रण मन्दोदरी की दीर्घदर्शिता और सद्विचारकताको कितना अधिक निखार देता है यह पाठक इस प्रकरणको पढ़ स्वयं देखें । रावण सीताको हरकर लंका में वापस पहुँचता है उस समय भी मन्दोदरी कितने ढंगसे कुपथगामी पतिको सुपथपर लानेका प्रयत्न करती है यह आश्चर्यमें डाल देनेवाली बात है । इन्द्रजित् और मेघवाहन इसके पुत्र हैं । रावणवधके बाद जब इसके दोनों पुत्र अनन्तवीर्य महामुनिके पास दीक्षा लेते हैं तब यह अधिक दुःखी होती है परन्तु शशिकान्ता नामकी आर्या अपने शान्तिपूर्ण वचनों से उसे प्रकृतिस्थ कर देती है जिससे वह अनेक स्त्रियोंके साथ आर्यिका हो जाती है । अब तीन खण्ड के अधिपति रावणकी पट्टरानीके शरीरपर केवल एक शुक्ल साड़ी हो सुशोभित होती है । अन्तमें तपश्चरण कर स्वर्ग जाती है ।
[ ३ ] राजा दशरथ
राजा दशरथ अयोध्या के राजा अनरण्यके पुत्र हैं, स्वभावके सरल, शरीरके सुन्दर तथा साहसके अवतार हैं । इनकी चार रानियाँ कौशल्या ( अपराजिता ), केकया, सुमित्रा और सुप्रभासे राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न ये चार पुत्र उत्पन्न होते हैं । मित्रवत्सलता के मानो सागर ही हैं । राजा जनकके ऊपर म्लेच्छोंका आक्रमण होता है । मित्रका समाचार पाते ही राजा दशरथ पूरी तैयारीके साथ जनककी सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं और म्लेच्छ नष्ट-भ्रष्ट होकर उनके देशसे भाग जाते हैं । राजा दशरथ के इस सहयोग एवं मित्रवात्सल्य से प्रेरित हो राजा जनक अपनी पुत्री सीताको दशरथ सुत रामके लिए देना निश्चित कर लेते हैं । नारदीय लीलाके कारण यद्यपि जनकको इस विषय में विद्याधरोंके साथ काफी
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संघर्ष उठाना पड़ता है।
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