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मरणकण्डिका - १५
बालपण्डित मरण करने वाले पंचमगुणस्थानवर्ती मनुष्य एवं तिर्यंच तथा छठे गुणस्थान से ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त के पण्डितमरण करने वाले मनुष्य वैमानिक देव होते हैं और पण्डितपण्डित मरण करने वाले शाश्वत सुख प्रदाता निर्वाण को प्राप्त करते हैं।
प्रश्न - "चतुर्धाराधनाफलं क्रमेणाऽहं वक्ष्ये' पद द्वारा आचार्यदेव ने प्रतिज्ञा की थी कि मैं क्रम से चारों आराधनाएँ और उनका फल कहूँगा किन्तु उसे न कह कर बाल एवं पण्डित मरण के माध्यम से उनके स्वामियों का कथन क्यों किया गया है?
उत्तर - आराधक के बिना आराधना और उसके फल की प्राप्ति असम्भव है और आराधक को आराधनाओं का फल मरण के बिना प्राप्त नहीं होता अत: आराधनाओं के पूर्व मरण के माध्यम से उनके स्वामियों का कधन करना आवश्यक है। पूर्ण आराधना का क्या फल है और आराधना की विराधना का क्या फल है, यह ज्ञात हो जाने पर "आराधक अधिक सावधानी पूर्वक आराधनाओं की आराधना करेगा" इस उद्देश्य से भी बाल आदि मरणों का विवेचन आवश्यक है।
सम्यक्त्व आराधना के भेद शामिकी क्षायिकी दृष्टिं, वैदकीमपि च विधा।
...मगारापन , सम्म मायलनेष्यते ।।३४॥ अर्थ - पूर्व में आराधित होने से सर्वप्रथम सम्यक्त्व आराधना कही जाती है। उपशम सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व और क्षायिक सम्यक्त्व के भेद से वह आराधना तीन प्रकार की है।।३४ ।।
प्रश्न - उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक सम्यक्त्व के क्या लक्षण हैं और जीव को सर्वप्रथम कौनसा सम्यक्त्व होता है?
उत्तर - अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को काललब्धि आदि की सहयोगिता से सर्व प्रथम उपशम सम्यक्त्व ही होता है। इसका जघन्योत्कृष्ट काल मात्र एक अन्तर्मुहूर्त ही है। इसके बाद जीव मिथ्यात्व में भी जा सकता है और क्षयोपशम सम्यक्त्व भी कर सकता है। यह सम्यक्त्व अत्यन्त निर्मल होता है।
जैसे कतक फल के संयोग से जल का कर्दम नीचे बैठ जाता है और जल निर्मल हो जाता है वैसे ही परिणाम विशेष से मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ इन पाँच प्रकृतियों के अधवा मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति तथा अनन्तानुबन्धी की चार इन सात प्रकृतियों के उपशम से
आत्मा में जो विशुद्धि होती है उसे उपशम सम्यक्त्व कहते हैं। इस सम्यक्त्व के होते ही जीव के सत्यार्थ देव में अनन्य भक्ति, विषयों से विराग, तत्त्वों का श्रद्धान और विविध मिथ्यादृष्टियों के मतों में असम्मोह प्रगट हो जाता है।
प्रश्न - क्षयोपशम सम्यक्त्व किसे कहते हैं?
उत्तर - चार अनन्तानुबन्धी कषाय, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन छह प्रकृतियों के उदयाभावीक्षय और इन्हीं के सदवस्थारूप उपशम से तथा देशघाती स्पर्धक बाली सम्यक्त्व प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थ श्रद्धान होता है उसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं।