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मरणकण्डिका - १४
शेष दो मरणों के स्वामी भजते मरणं बालं, सम्यग्दृष्टिरसंयतः ।
मिथ्यात्वाकुलित-स्वान्तो, बालबालमपास्तधीः ॥३३॥ अर्थ - बालमरण असंयत सम्मानिसीबों के होटा है और मिनाक के इदा पो भकुलित चित्त वाले कुबुद्धि जीवों का बाल-बालमरण होता है।।३३।।
प्रश्न - बाल-बाल, बाल और पण्डित आदि किसे कहते हैं?
उत्तर - व्यवहार में हेयोपादेय के ज्ञान से शून्य, अज्ञानी अथवा मूर्ख बालक या शिशु को बाल तथा बुद्धिमान को पण्डित कहते हैं। उसी प्रकार जो समीचीन श्रद्धा एवं चारित्र से हीन हैं वे बाल-बाल कहलाते हैं। इसी प्रकार जिनमें श्रद्धा तो पूर्ण है किन्तु चारित्र नहीं हैं वे बाल, श्रद्धा के साथ एकदेश चारित्र है वे बालपण्डित (यद्यपि वे श्रद्धावान हैं किन्तु चारित्र एकदेश है), जो श्रद्धा एवं चारित्र से सम्पन्न हैं वे पण्डित हैं। इन्हीं गुणों के कारण उनके मरण को भी उसी नाम से कहा गया है।
प्रश्न - किस गुणस्थान में कौनसा मरण होता है? उत्तर - प्रथम गुणस्थान में बाल-बाल मरण होता है।
द्वितीय गुणस्थान में यद्यपि मिथ्यात्व नहीं है किन्तु अनन्तानुबन्धी कषायजन्य अध्यवसाय जीवित है अत: वहाँ भी बाल-बाल मरण है।
तृतीय गुणस्थान में मरण नहीं होता। चतुर्थ गुणस्थान में बाल मरण है। पंचम गुणस्थान में बाल-पण्डित मरण है। छठे से ग्यारहवें गुणस्थानों में से प्रत्येक में पण्डित मरण होता है। बारहवें और तेरहवें गुणस्थानों में मरण नहीं है। चौदहवें गुणस्थान से मुक्ति प्राप्त होती है अतः वहाँ पण्डित-पण्डितमरण कहा गया है। प्रश्न - किस मरण से मरने वाले जीव कहाँ-कहाँ जाते हैं? उत्तर - बाल-बाल मरण करने वाले प्रथम गुणस्थानवर्ती चारों गतियों में जाकर जन्म ले सकते हैं। बाल-बाल सासादन गुणस्थानवी जीव नरकगति के अतिरिक्त शेष तीनों गतियों में जा सकते हैं।
पूर्व में नरकायु, तिर्यंचायु या मनुष्यायु को बाँध लेने वाले बद्धायुष्क चतुर्थ गुणस्थानवर्ती मनुष्य नरकगति में प्रथम नरक पर्यन्त, मनुष्यगति एवं तिर्यंचगति में भोगभूमि के मनुष्य-तिर्यच होते हैं। बाल मरण करने वाले अबद्धायुष्क मनुष्य और तिर्यंच देवगति में वैमानिक देव ही होते हैं, तथा देव और नारकी कर्मभूमिज मनुष्य ही होते हैं।