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मरणकण्डिका - १३
पाँच मरणों का नाम निर्देश पण्डितं पण्डितादिस्थ सहितं बानाण्डितम् !
चतुर्थं मरणं बालं, बालबालं च पञ्चमम् ॥२९॥ अर्थ - (१) पण्डित-पण्डित मरण, (२) पण्डितमरण, (३) बाल-पण्डितमरण, (४) बाल मरण और (५) बाल-बालमरण, इस प्रकार मरण के पाँच भेदों के ये नाम हैं ||२९ ।।
इनमें तीन मरण प्रशस्त हैं नि:श्रेयस-सुखादीनां, आसन्नीकरण-क्षमम्।
आदिम जायते तत्र, प्रशस्तं मरण-त्रयम् ।।३०॥ अर्थ - पाँच प्रकार के मरणों में से आदि के तीन मरण प्रशस्त हैं क्योंकि ये निःश्रेयस् एवं अभ्युदय सुखों को सन्निकट करने में सक्षम हैं ।।३० ।।
पण्डित-पण्डित और बालपण्डित मरण के स्वामी विज्ञातव्यमयोगानां, तत्र पण्डित-पण्डितम्।
देशसंयत-जीवानां, मरणं बालपण्डितम् ।।३१॥ अर्थ - 'चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी जिन का मरण पण्डित-पण्डित मरण होता है और देशसंयतजीवों के बालपण्डित मरण होता है ।।३१ ॥
प्रश्न - पण्डित-पण्डित मरण के बाद पण्डितभरण आता है उसे छोड़कर बालपण्डित मरण के स्वामी क्यों कहे गये हैं ?
उत्तर - पण्डेितमरण के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहना है अत: उसे छोड़ कर अल्प कथन होने के कारण बालपण्डितमरण को ग्रहण किया गया है।
पण्डितमरण के भेद पादोपगमनं भक्तप्रतिज्ञामिङ्गिणी-मृतिम् ।
वदन्ति पण्डितं त्रेधा, योगिनो युक्तिचारिणः ॥३२॥ अर्थ - निर्दोष चारित्र पालन करने वाले साधुजनों का पण्डितमरण होता है, उसके तीन भेद हैं, (१) प्रायोपगमन मरण, (२) इंगिनी मरण तथा (३) भक्तप्रतिज्ञा मरण ।।३२ ।।
प्रश्न - पण्डितमरण कहाँ-कहाँ होता है और ये जीव कहाँ उत्पन्न होते हैं?
उत्तर - छठे, सातवें, आठवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें गुणस्थानवी जीवों का पण्डितमरण ही होता है तथा इन गुणस्थानों में से किसी भी गुणस्थान में मरण करने वाले मुनिराज नियमतः वैमानिक देवों में ही उत्पन्न होते हैं।