Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आशीर्वचन
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के माध्यम से समाज में विभिन्न प्रकार के आयाम भूख देखते हैं न प्यास और उसी प्रबल पुरुषार्थ के फलस्वरूप उद्घाटित हुए हैं और हो रहे हैं। उन अद्वितीय धूनी उनका मन इच्छित कार्य शीघ्र ही सफलता के चरण के मानस में जब किसी कार्य की क्रियान्विति करने की चूम लेता है। वास्तव में धुन एक ऐसा गुण है जो अभिलाषा जागृत होती है तब उनके सम्मुख सिर्फ कायर को कायरता से हटाकर साहस के मार्ग पर ले एक ही लक्ष्य रहता है
जाता है। प्रमादी को प्रमाद से हटाकर कर्मठ बनने "प्राणों की परवाह नहीं है, प्रण को अटल निभायेंगे।" की प्रेरणा देता है तथा दुष्कर कार्य को भी सुकर बना इसीलिए उन क्षणों में वे न दिन देखते हैं न रात, न देता है।
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साध्वी श्री विद्यावती
सशिक्षा के प्रेरक
इस विराट भारत देश में राणावास एक ऐसा शिक्षण संस्थान चलाये जायें तो निःसन्देह राष्ट्र का अनूठा शिक्षा केन्द्र है जिसमें बच्चों में सद्संस्कारों को विकास एवं उत्थान संभव है। वस्तुतः ऐसे शिक्षा केन्द्र निर्माण करने की ज्योति, उच्च जीवन जीने की कला, को चलाकर सुराणाजी ने विश्व के सामने शिक्षा के आध्यात्मिकता की गहराई में उतरने की शक्ति एवं व्याव- सही उद्देश्य को प्रकट किया है। उन्होंने अपने अथक हारिक दैनिक चर्या का अत्यन्त सरल, सुबोध एवं कल्याण- परिश्रम एवं कुशाग्र बुद्धि के द्वारा एक ऐसी दिव्य प्रद उद्बोधन दिया जाता है। इसका सारा श्रेय संस्कारों लो प्रज्वलित की है कि जिसकी लो से सहस्रास्र बालकों के निर्माता श्री सुराणाजी को ही है। ऐसा लगता है का जीवन-निर्माण हुआ है और हो रहा है। कि अगर स्थान-स्थान पर ऐसी संस्थायें हों एवं ऐसे
00 मणि-कांचन सुयोग
0 साध्वी श्री विजयश्री जैनधर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर ने कहा- इसका प्रत्यक्ष दर्शन श्री सुराणाजी के जीवन में दिखायी 'संगाम सीसे जह नागराय'-जैसे नागराज (हाथी) जब देता है। ये मितभोजी, मितभाषी एवं मितव्ययी हैं। रणक्षेत्र में अपने मोर्चे पर जा डटता है, तब भले ही इनकी वेशभूषा सादी, खादी की और सफेद होती है भालों के घाव लगें, चाहे गोलियों की बौछार होवे, और साधु-प्रवृत्ति जैसी होती है। जब ये संस्था के लिए वह मरना मंजूर कर लेगा पर वहाँ से भागेगा नहीं। अर्थ-संग्रह हेतु यात्रा पर निकलते हैं, तब अनेक स्थानों वैसे ही बलिदानी व्यक्ति अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पर मान-अपमान, लाभ-अलाभ, प्रशंसा-निन्दा आदि की डट जाते हैं, समर्पित हो जाते हैं। वे शरीर का परित्याग अनेक घाटियों को पार करते हुए निरन्तर आगे बढ़ते करके भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सजग रहते हैं। रहे हैं। शायद ही तेरापंथ संघ का कोई ऐसा ग्राम ___श्री केसरीमलजी सुराणा भी इन्हीं बलिदानी व या शहर या प्रान्त बचा हो जहाँ ये नहीं पहुंचे हों। ये कर्मठ व्यक्तियों में से एक हैं। ये जिस कार्य को प्रारम्भ सदैव अपनी धन में "चरैवेति चरैवेति" का मन्त्र कर देते हैं फिर उसकी पूर्ति तक विश्राम नहीं लेते। अपनाते हैं। बीच में कितनी ही बाधाएँ आयें, चाहे कितने ही संघर्षों प्रायः यह देखा जाता है कि जो व्यक्ति धार्मिक क्रियाके तूफान मचल उठे पर कोई इनके मेरु की भाँति कलापों में अधिक रस लेता है, वह सामाजिक कार्यों में अडिग विचारों को हिला नहीं सकते। ये अपने जीवन उतना रस नहीं लेता है और जो व्यक्ति सामाजिक कार्यों में "कर्तव्यं या मत्त व्यं" का सिद्धान्त लेकर चलते हैं। में अधिक रस लेता है, वह धार्मिक क्रिया-कलापों में सफलता इनके चरण चूमती है।
उतनी रुचि नहीं लेता। पर यहाँ तो सामाजिक और युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी का प्रमुख उद्घोष धार्मिक दोनों कार्यों का 'मणि-कांचन' और 'सोने में है कि "संयमः खलु जीवनम्"-संयम ही जीवन है। सुगन्ध' का सुयोग है।
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