Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
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निर्लिप्त जीवन
मुनि श्री सोहनलाल (श्रीडूंगरगढ़) दृढ़धर्मी, प्रियधर्मी श्रावक केसरीमलजी का जीवन बहुत इन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ किया है । इनका रहनस्यागमय है। इनका संयममय जीवन देखने वालों को सहन, सादगी, और वैराग्य भावना प्रशंसनीय है। समाज आकृष्ट किये बिना नहीं रहता। दिन में, रात्रि में सेवा और शासन की सेवा बहुत की है और कर रहे हैं। अधिकाधिक समय धर्म-जागरण में व्यतीत करते हैं। ये छोटे-बड़े सभी साधुओं का समान रूप से विनयनिद्रा बहुत कम लेते हैं। संस्था का भार संभालते हुए भी सेवा करते हैं। अतिथिसंविभाग श्रावक का बारहवाँ व्रत दिमाग पर भार महसूस नहीं करते, यह इनकी विस्मृति है। ग्यारह व्रत श्रावक स्वयं कर सकते हैं। बारहवां व्रत साधना का सुफल है। इनका जीवन इस दोहे के अनुरूप तो चारित्रात्माओं की कृपा से ही संभव है । आप बड़े
नम्र शब्दों में अर्ज करते हैं-"माईता तारो कृपा करावो" जे समदृष्टि जीवड़ा, करे कुटुम्ब प्रतिपाल। बड़े चढ़ते भावों से दान देकर व्रत निपजाते हैं । भगवान अंतरगत न्यारा रहे, ज्यू धाय खिलावे बाल ॥ ने मोक्ष के चार मार्ग बतलाये हैं-दान, शील, तप और
ये अपना जीवन निलिप्त रखते हैं । भमेवान महावीर भावना । केसरीमलजी इन चारों की अच्छी आराधना ने श्रावकों के गुणों के विषय में उववाई सूत्र में कहा है- करते हैं। "अप्पिछा, अप्पारंमा, अपरिग्गहा।" यह आगम पाठ
शासन-सेवी : शासन-भक्त
साध्वी श्री कमलाकुमारी (उज्जैन) आत्मा की शुद्धि त्यागरूपी त्रिवेणी में नहाने से ही धारी बने, देवकृत उपसर्ग भी सहे । जो कायर थे वे संभव है। महाव्रत और अणुव्रतरूपी नौका पर चढ़कर साधना से विचलित हो गये, परन्तु आनन्द, कामदेव जैसे ही भवसागर से पार हो सकते हैं। पूर्णत्यागी और अपूर्ण- वीर साधना शिखर पर चढ़ गये। त्यागी दो प्रकार के मनुष्य होते हैं । पूर्णत्यागी तो संयमी आज भी स्वामी भीखणजी के शासन में ऐसे श्रावक पुरुष ही हो सकते हैं। उनका जीवन अहर्निश संयम के श्री केसरीमलजी सुराणा हैं जो शासन-सेवी, परमभक्त, पथ पर समर्पित होता है। अपूर्णव्रती देशव्रती श्रावक होते धर्मनिष्ठ, श्रद्धाशील, कर्त्तव्यपरायण, त्याग की त्रिवेणी हैं । वे अपनी शक्ति के अनुसार क्रिया करते हैं । भगवान् में रमण करते हैं। आपका नाम व काम दोनों ही महावीर ने श्रावकों को भी ऊँचा माना है। उपासक- शासन में प्रसिद्ध हैं। दशांग सूत्र में १० श्रावकों का वर्णन आया है। वे पडिमा
00 नवीन प्रेरणाओं के उद्घाटक
0 साध्वी श्री प्रियंवदा भारतीय संस्कृति में मानव की नहीं बल्कि मानवता सिर्फ तेरापंथ समाज के ही नहीं अपितु समस्त जैन समाज की एवं साधक की नहीं बल्कि साधकता की पूजा होती के लिए एक आधारस्तम्भ हैं, क्योंकि वे धुन के धनी आयी है। सुराणाजी भी एक ऐसे ही गुणवान् व्यक्ति हैं, एवं पक्के हैं। उन्होंने इसी प्रकार अनेक धुनों के प्रवाह इसीलिए उनके व्यक्तित्व की उन्मुक्त, सुखद एवं वास्तविक में प्रवाहित होकर समाज को नयी-नयी प्रेरणाएँ एवं चर्चाएँ जन-जन के श्रुतिपटों में गुजित हो रही हैं। वे नये-नये चिन्तन दिये हैं तथा उन प्रेरणाओं व चिन्तनों
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