Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स्थान है । यह चौदहवां गुणस्थान चतुर्थ गुणस्थान में देखे गये ईश्वरत्व, परमात्मत्व का तादात्म्य है। पहले और चौदहवें गुणस्थानों के बीच जो दो से लेकर तेरहवें पर्यन्त गुणस्थान हैं, वे कर्म और आत्मा के द्वन्द्वयुद्ध के फलस्वरूप प्राप्त होने वाली उपलब्धियों के नाम हैं। क्रमिक विकास के मार्ग में आत्मा को किन-किन भूमिकाओं पर आना पड़ता है, यही गुणस्थानों की क्रमबद्धVखला की वे एक-एक कड़ियाँ हैं ।
यहाँ गुणस्थानों की अति संक्षिप्त रूपरेखा बतलाई है। गुणस्थानों के नाम, उनका क्रमबद्ध व्यवस्थित विशेष विवरण इसी ग्रन्थ की दूसरी गाथा में दिया गया है। अन्य ग्रन्थों में गुणस्थान सम्बन्धी चर्चा
जनदर्शन के समान ही अन्य दर्शनों में भी आत्माविकास के सम्बन्ध में विचार किया गया है। उनमें भी कर्मबद्ध आत्मा को क्रमिक विकास करते हुए पूर्ण मुक्त दशा को प्राप्त करना माना है । योगवाशिष्ट और पातंजल योगसूत्र आदि ग्रन्थों में आत्मविकास की भूमिकाओं का विस्तार से कथन किया गया है योगवाशिष्ट में सात भूमिकायें अज्ञान की और सात भूमिकायें ज्ञान की मानी हैं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं--
अशान की भूमिकायें-१. बीजजाग्रत, २. जाग्रत, ३ महाजाग्रत, ४. जाग्रतस्वप्न, ५. स्वप्न, ६. स्वप्नजाग्रत, ७. सुषुप्तक ।
ज्ञान की भूमिकायें-१. शुभेच्छा, २. विचारणा, ३. तनुमानसा, ४. सत्त्वापत्ति, ५. असंसक्ति ६. पदार्थाभाविनी, '७. तूर्यगा।
उक्त १४ भूमिकाओं का सारांश निम्न प्रकार है
१. बोजजाग्नत-इस भूमिका में अहं एवं ममत्व बुद्धि की जागृति नहीं होती है। किन्तु बीज रूप में जागृप्ति की योग्यता होती है। यह भूमिका वनस्पति आदि क्षुद्र निकाय में मानी गई है ।