Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कमंस्तव उग गयान में है । परन्तु आय के णेर रहते हुए गणस्थान का समय पूरा हो जाने पर जो जीव गिरता है, वह पतन के समय आरोहण क्रम के अनुसार गुणस्थानों को प्राप्त करता और उस-उम गुणस्थान के योग्य कर्मप्रकुतियों का बन्ध, उदय, सदीरणा करना प्रारम्भ कर देता है, अर्थात् आरोहण के समय आरोहण-क्रम के अनुसार जिस-जिस गुणस्थान को पाकर जिन-जिन कर्मप्रकृतियों के बन्ध, उदय, उदीरणा का विच्छेद करता है, उसी प्रकार पतन के समय भी उस-उस गुणस्थान को पाकर वह जीव उन-उन कर्मप्रकृतियों के बन्ध, उदय, उदीरणा को प्रारम्भ कर देता है और गुणस्थान का काल समाप्त हो । जाने से गिरने वाला कोई जीव छठे गुणस्थान को, कोई पांचवें गुणस्थान को, कोई चौथे गुणस्थान को और कोई दूसरे गुणस्थान में होकर पहले तक आ जाता है।
उपशमश्रेणी' के प्रारम्भ का क्रम संक्षेप में इस प्रकार है
चौथे, पाँचद, छठे और सातव गुणस्थान में से किसी भी गुणस्थान में वर्तमान जीव पहले अनन्तानुबन्धी क्रोधादि चारों कपायों का उपशमन करता है । अनन्तर अन्तर्मुहूर्त में दर्शनमोहनीयत्रिक (सम्यक्त्व, सम्यक्त्व-मिथ्यात्व, मिथ्यात्व) का एक साथ उपशमन करता है। इसके ।
१. कर्मग्रन्थकर्ता के अभिप्रायानुसार एक जन्म में दो से अधिक बार उपशम
श्रेणी नहीं की जा सकती है और क्षपकश्रेणी एक ही बार होती है । जिसने एक बार उपशमश्रेणी की है, वह उस जन्म में क्षपकीणी कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। परन्तु जो दो बार उपराभश्रेणी कर चुका है, वह उसी जन्म में क्षपकश्वेणी नहीं कर सकता है। परन्तु सिद्धान्त का अभिप्राय यह है कि जीप एक जन्म में एक बार ही श्रेणी कर सकता है। इसलिए जिसने एक बार उपशमश्रेणी की है, वह पुनः उसी जन्म में अपकश्रेणी नहीं कर सकता है।