Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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द्वितीय कर्मग्रन्थ
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करने के लिए केवली भगवान द्वारा समुद्घात किया जाना अपरिहार्य होता है। परन्तु जिन केवलज्ञानियों के वेदनीय आदि तीनों अघाती कर्मों की स्थिति आर पुद्गल परमाणु आयुकर्म के बराबर हैं, वे समुद्घात नहीं करते हैं।
सभी केवलज्ञानी सयोगि अवस्था के अन्त में परम निर्जरा के कारणभूत तथा लेश्या से रहित अत्यन्त स्थिरता रूप ध्यान के लिए योगों का निरोध करते हैं । योगनिरोध का क्रम इस प्रकार है
सर्वप्रथम बादर स्थूल) काययोग से बादर मनोयोग और बादर वचनयोग को रोकते हैं, अनन्तर सूक्ष्म काययोग से उस बादर काययोग को रोकते हैं और उसी सूक्ष्म काययोग स क्रमशः सुक्ष्म मनोयोग और सूक्ष्म वचनयोग को रोकते हैं । अन्त में सूक्ष्म क्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान' के बल से केवली भगवान सूक्ष्म काययोग को भी रोक देते हैं। इस प्रकार योगों का निरोध हो जाने मे सयोगि केवली भगवान् अयोगि बन जाते हैं । साथ ही उसी सूक्ष्मक्रियाऽनिवृत्ति शुक्लध्यान की सहायता से अपने शरीर के भीतरी पोले भाग-मुख, उदर आदि भाग को आत्मा के प्रदेशों से पूर्ण कर देते हैं।
उनके आत्मप्रदेश इतने संकुचित-घने हो जाते है कि वे शरीर के दो-तिहाई (२३) हिस्से में समा जाते हैं। इसके बाद वे केवली भगवान् समुच्छिन्नक्रियाऽप्रतिपाति शुक्लध्यान' को प्राप्त करते हैं १. जन्म सर्वश भगवान योगनिरोध के क्रम में अन्तत: सूक्ष्म कापयोग के
आश्रय से दूसरे बाकी के योगों को रोक देते हैं, तब वह सूक्ष्मकियानिवृत्ति शुक्लध्यान कहलाता है। क्योंकि उसमें श्वास-उच्छवास के समान सूक्ष्म क्रिया ही वाकी रह जाती है और उसमें से पत्तन-परिवर्तन होना भी
सम्भव नहीं है। २. इस ध्यान में शरीर को श्वास-प्रश्वास आदि सूक्ष्म क्रियाएं भी बन्द हो
जाती हैं और आस्मप्रदेश सर्वथा निष्प्रकम्प हो जाते हैं। क्योंकि इसमें