Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मस्तव : परिशिष्ट (१६) सांसारिकभाव-अबिनाभावी-सालावेदनीय, अमातावेदनीय ।
(२०) मनुष्यभव-अविनाभावी- मनुष्यगति, मनुष्यायु । २
(२१) मोक्षसहायक मुख्य पुण्यप्रकृतिया-स. बादर, पर्याप्त, पंचेन्द्रियजाति, उच्चगोत्र, सुभम, आदेय, यशःकीर्तिनाम ।
पूर्वोक्त उदय के निमित्तों में कितनेक मुख्य और दूसरे कितनेक उनके अन्तर्गत महायक निमित्त भी होते हैं। जैसे कि प्रमत्तभाव के मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीकषाय आदि बाबर (स्थूल) कषाय के सम्भावित प्रत्येक निमित्त नौवें गुणस्थान तक होते हैं। सिद्धत्व को प्राप्त करने के अति निकट संसारी जीव में मनुष्यभव तथा केवलशान अविनाभावी प्रकृतियों का भी समावेश होता है। इन निमित्तों का अभ्यामियों की सरलता के लिए यहाँ संकेत किया गया है।
उदय के समान उदीरणा समझना चाहिए और उसमें जिन प्रकृ. तियों की न्यूनाधिकता आदि बतलाई गई है, तदनुसार घटाकर समझ लेना चाहिए।
सत्ता
___ बन्धादिक द्वारा स्वरूपप्राप्त कर्मप्रकृतियों का जीव के साथ वर्तमान रहना सत्ता कहलाती है। सत्तायोग्य १४८ प्रकृतियाँ हैं। किस गुणस्थान तक कितनी-कितनी प्रकृतियों की सत्ता रहती है, इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार से समझना चाहिए।
(१) मिथ्यात्व गुणस्थान-मिथ्यात्व गुणस्थानवी आत्मा के मुख्यतया दो भेद हैं-(१) अनादिमिथ्यात्वी, (२) सादिमिथ्यात्वी । जिन्होंने मिथ्यात्व के अतिरिक्त कभी भी अन्य गुणस्थान प्राप्त नहीं किया है, उन्हें अनादिमिथ्यात्वी कहते हैं। उनमें भी कितने ही जीव आगे के