Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

Previous | Next

Page 209
________________ १७४ छोड़ देता है, उतने काल को बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं । सारांश यह है कि विश्व के प्रत्येक परमाणु औदारिक आदि सातों वर्गणाओं में परिणमन करें यानी जब जीव सारे लोक में व्याप्त सभी परमाणुओं को औदारिकादि रूप से प्राप्त कर ले तब एक बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन होता है । कमस्तन परिशिष्ट : २. सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन - जिसने काल में समस्त परमाणुओं को औदारिक शरीर आदि सात वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणा रूप से ग्रहण करके छोड़ देता है, उस काल को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहते हैं । इसका अर्थ यह है कि जिस समय जीव सर्व लोकवर्ती अणुओं की औदारिक रूप में परिणमाता है, अगर उस समय के बीच में वैयि पुद्गलों को ग्रहण कर ले तो उस समय को गिनती में नहीं लेना । किन्तु मदारिक रूप में परिणत अणुओं का ही ग्रहण करना । इस प्रकार वैशिरीर वर्गणा आदि अन्य वर्गणाओं के लिए भी समझना चाहिए | ३. बाबर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन- एक जीव अपने मरण के द्वारा लोकाकाश के समस्त प्रदेशों को क्रम से या बिना क्रम मे जैसे बने वैसे जितने समय में स्पर्श कर लेता है, उसे बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। जिस प्रदेश में एक बार मृत्यु प्राप्त कर चुका है अगर उसी प्रदेश में फिर मृत्यु प्राप्त करे तो वह इसमें नहीं गिना जायेगा | केवल चेही प्रदेश गिने जायेंगे, जिनमें पहले मृत्यु प्राप्त नहीं की है । यद्यपि जीव असंख्यात प्रदेशों में रहता है फिर भी किसी प्रदेश को मुख्य मान कर गिनती की जा सकती है । I ४. सूक्ष्म क्षेत्र पुगलपरावर्तन कोई जीव संसार में भ्रमण करते हुए आकाश के किसी एक प्रदेश में मरण करके पुनः उस प्रदेश के समीपवर्ती दूसरे प्रदेश में मरण करता है । पुनः उसके निकटवर्ती

Loading...

Page Navigation
1 ... 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251