________________ 216 कर्मस्तव : परिशिष्ट देवद्धिक, खगतिद्विक, शरीरनाम 5, बन्धननाम 5, संघातन 5, निर्माण, संहनन 6, अस्थिरषदक, संस्थान 6, अगुरुलवुचतुष्क, अपर्याप्तनाम, साता या असातावेदनीय, प्रत्येकत्रिक, अंगोपाग 3, सुस्वरनाम, नीच गोत्र= 72, प्रकृतियों की सना का हो जाता है : चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय मेंमनुष्यत्रिक, वसत्रिक, यश कीर्तिनाम, आदेयनाम, सुभग, तीर्यकरनाम, उच्चगोत्र, पंचेन्द्रियजाति, साता या असातावेदनीय में से कोई एक इन 13, प्रकृतियों का अभाव हो जाने से आत्मा मुक्त हो जाती है।