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कर्मस्सव : परिशिष्ट क्षय हो जाने से । ११३-१=११२ भाग ६ में-पाँचवें भाग के अन्त में हास्य, रति,
अरति, शोक, भय, जुगुप्सा का क्षय
होने से । ११२-६=१०६ भाग ७ में - छठे भाग के अन्तसमय में पुरुषवेद
का क्षय होने से १०६-१= १०५ भाग में-सातवें भाग के अन्त में संज्वलन
क्रोध का क्षय होने से १०५ -- १=
भाग में आठवें भाग के अन्त में संज्वलन
मान का क्षय होने से १०४-.१=
१०. सक्षमसंपराय
नौवे भाग के अन्त में संज्वलन माया का क्षय होने से १०२ प्रकृतियां जो
१०वें की सत्ता है। मूल -
ज० १४८; अंतिम १०२ सम्भवसत्ता की अपेक्षा से १४८ उपशमश्रेणी में अनन्तानुबन्धीचतुष्क व नरक तियंचायु को कम करने से (विसं योजना से) १४८-६=१४२ उपशमश्रेणी में नौवें गुणस्थानवत्) १३६ ।
क्षपकश्रेणी में १०२, दस गुणस्थान के अन्तिम समय में संज्व.
लन लोभ का क्षय होने से शेष रही १०१