Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 247
________________ कर्मस्तव : परिशिष्ट ७. अप्रमत्तविरत ८. अपूर्वकरण क बत् १४५ ख वत् १४१ गवत् १४१ पवत् १३८ मूल ८ उ० चौथे गुणस्यान के सदृश सम्भव सत्ता की अपेक्षा १४८ कवत् १४५ खं वत् १४१ ग बत् १४१ घवत् १३८ मूल८ उ० १४८, १४२, १३६, १३८ सम्भवसता की अपेक्षा से (योग्यता से) १४८ । अनन्तानुबन्धी व नरकायु, तिर्यचायु वाला उपशम घेणी नहीं कर सकता, इस अपेक्षा से १४२ । अनन्तानुबन्धीचतुष्क, दर्शनत्रिक (विसंयोजना) नरक ब तिर्यंचायु इन प्रकृतियों को कम करने मे १३६ । (पंच संग्रह में कहा है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्क की विमंयोजना बिना जीव उपशमश्रेणी पर आरूढ़ नहीं हो सकता। सर्वमत है कि नरक व तिर्यंच आयुकर्म की सत्ता वाला हो उपगमश्रेणी नहीं चढ़ सकता ।) घवत् १३८

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