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द्वतीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
२११ के तीन आयु की सत्ता नरहने से १४५ प्र. (ख) क्षायिक सम्यक्त्वी, अवरमशरीरी के
अनन्तानुबन्धी चतुष्क व दर्शनत्रिक की
सत्ता नहीं रहती अतः १४८-७=१४१३० । (ग) उपशमश्रेणी (विसयोजना-जो कर्म प्रकृतियाँ
वर्तमान में तो किसी दूसरी प्रकृतियों में संक्रमित कर दी गयी हों, वर्तमान में तो उनकी सत्ता नहीं है, परन्तु फिर से उनकी सत्ता सम्भव हो) की अपेक्षा मे १४८ | अनन्तानुवन्धीचतुष्क व दर्शनत्रिक के न्यून
होने पर १५१ (घ) चरमशरीरी की अपेक्षा में (क्षायिक
सम्यक्त्वी) अनन्तानुबन्धी ४, दर्शनत्रिक ३,
आयु ३ के कम करने पर १३० प्र० की। ५. वेशविरत मूल ८ ० चौथे गुणस्थान के सदश
सम्भव सत्ता की अपेक्षा से (योग्यता मे) १४८ क वत् १४५ ख वत् १४१ ग वत् १४१
घ बत् १३८ ६. प्रमत्तविरत मूल ८ उ० चौथे गुणस्थान के सदृश
सम्भव सत्ता की अपेक्षा से (योग्यता मे) १४८