Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 244
________________ द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट १२. क्षीणमोह १३. सयोगिकेवली १४. अयोगिकेवली ओघ १. मिथ्यात्व मूल ५ उ० ५४ ऋषभनाराच व नाराच संहनन, क्षपकश्रेणी आरूढ़ के नहीं होते । ५६–२=५४ अन्त समय के आगे निद्रा, प्रचला की उदीरणा सम्भव नहीं । अतः ५४ - २=५२ ܬܘ 30 € मूल २ ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४. अन्तराय ५= १४ प्रकृतियाँ इस गुणस्थान में न रहने में उदीरणा सम्भव नहीं, तथा तीर्थंकरनाम जोड़ देने से ५२ - १४+१=३ प्रकृतियों की उदीरणा सम्भव है । किसी कर्म की उदीरणा नहीं होती है । सत्ता-विवरण मूल प्रकृति उत्तर प्रकृति १४८ ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय है, वेदनीय २, मोहनीय २५, आयु ४, नाम १३ (पिंड प्र० ६५, प्रत्येक सदशक १०, स्थावरदशक १०६३) गोत्र २ अन्तराय ५ । मूल ८ उ० १४८ जिस जीव ने पहले नरकायु का बन्ध कर लिया हो, व फिर क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पाकर उसके

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