Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 242
________________ द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट ओच १. मिथ्यात्व २. सास्वावन ३. मिश्र २०७ जाति, मनुष्यायु, मनुष्यगति तीर्थंकरनाम उच्च गोत्र - १२ ५. वैशविरत ६. प्रमत्तविरत उदीरणा-विवरण मूलप्रकृति उदययोग्य के अनुसार मूल ८ उ० ११७ मिश्रमोहनीय, सम्यक्त्वमोहनीय, आहारकढिक व तीर्थंकरनाम की उदीरणा सम्भव नहीं होने से ५ प्रकृतियाँ न्युन । मूल ८ उदय के समान समझना । ४. अविरतसम्यग्दृष्टि मूल चलति १२२ ३० १११ मूल ३० १०० उदयवत् १२ प्रकृतियों की उदीरणा तो सम्भव नहीं, व मिश्रमोहनीय की उदीरणा सम्भव है । उ० १०४ मिश्रमोहनीय की उदीरणा सम्भव नहीं । सम्यक्त्वमोहनीय व चार आनुपूर्वी को उदीरमा सम्भव है । अत: १००÷५-१-१०४ | भूल ८ ०८७ उदयवत् १७ प्रकृतियों की उदीरणा सम्भव है । मूल ८ ज० ८१ उदयवत् सम्भव है |

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