________________
द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
११. उपशान्तमोह
१२. क्षीणमोह
२१५
प्रकृतियाँ जो बारहवें गुणस्थान के प्रथम
समय में हैं ।
मूल
उ० १४८, १४२, १३८
सम्भवत्ता की अपेक्षा १४= उपशमश्रेणी में अनन्तानुबन्धीचतुष्क व नरकायु, विचायु घटाने से १४८–६–१४२ उपशमश्रेणी में १३८
( इस गुणस्थान में क्षपकश्रेणी नहीं होती है ।) मूल ७
उ० १०१
द्विचरम समय में निद्रा व प्रचला का क्षय होन से १०१ - २=६६
अन्तिम समय में ज्ञानावरण ५ दर्शनावरण ४ और अन्तराय ५ का क्षय होने से ६६-१४= ८५, जो तेरहवें गुणस्थान की सत्ता प्रकृतियाँ हैं । (इस गुणस्थान में उपशमश्रेणी नहीं होती ।
१३. सयोगिकेवली मूल ४
१४. अयोगिकेवली मूल ४
उ० ८५
८५ प्रकृतियाँ, चौदहवें गुणस्थान के द्विचरम समय में क्षय होने वाली ७२ प्रकृतियाँ एवं अन्त समय में क्षय होने वाली १२ प्रकृतियाँ तथा सातावेदनीय या असातावेदनीय में में कोई एक । उ० १२ १३
चौदहवें गुणस्थान के द्विचरम समय पर्यन्त जो ८५ प्रकृतियों की सत्ता रहती है उसमें में द्विचरम समय में-