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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
६. अनिवृत्तिकरण मूल ८
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उ० १४८ अंतिम १०३
सम्भवता की अपेक्षा १४८ उपशमश्रेणी में अनन्तानुबन्धीचतुष्क और नरक तिर्यंचायु की सत्ता न रहने पर १४८-६१४२ । उपशमश्रेणी में अनन्तानुबन्धीचतुष्क और दर्शनत्रिक की विसंयोजना व नरक तियचायु का अभाव होने से १४६ - ७ - २१३६ । क्षपक श्रेणी में
भाग १ में - अनन्तानुबन्धी ४, दर्शनत्रिक, आयु तीन की सत्ता न रहने से । १४८ - १०१३८
भाग २ में - स्थावरद्विक, तिर्यचद्विक, नरकद्विक
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आतप उद्योत स्त्यानद्धित्रिक, एकेन्द्रिय विकलेन्द्रियत्रिक, साधारण नामकर्म की सत्ता नहीं रहती १३८-१६= १२२
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भाग ३ में दूसरे भाग के अन्त में अप्रत्याख्याना
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प्रत्याख्यानावरण
वरणचतुष्क, चतुरुक की सत्ता क्षय हो जाती है ।
१२२ -८० ११४
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भाग ४ में तीसरे भाग के अन्त में नपुंसकवेद का क्षय हो जाने से । ११४-१
११३
भाग ५ में – बोथे भाग के अन्त में स्त्रीवेद का
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