Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मस्तव : परिशिष्ट वल से जिननामकर्म बांध लिया हो वह जीव नरक में जाते समय सम्परत्व को साम३.:. मिथ्याख को अवश्य ही प्राप्त करता है, परन्तु तीर्थकरनामकर्म की सत्ता तो हम गुणस्थान में है, अतः इस गुणस्थान में १४८ प्रकृत्तियों की सत्ता है।
(योग्यता की अपेक्षा से) २. सास्वादन मूल ८
उ० १४७ कोई भी जीव तीर्थकरनामकर्म बांधकर सास्वादन गुणस्थान प्राप्त नहीं करता है अतः दूसरे गुणस्थान में इसे जिननामकर्म की सत्ता
नहीं होती है। ३. मिश्र मूल
उ०१४७ दूसरे गुणस्थान के समान ४. अविरतसम्यग्दृष्टि मूल ८ उ० १४८, १४५, १४१, १४१, १३८
सम्भवसत्ता की अपेक्षा मे यद्यपि किसी एक समय में किसी एक जीव को दो आयु से अधिक की सत्ता नहीं होती, परन्तु योग्य सामग्री मिलने पर जो कर्म विद्यमान नहीं हैं, उनका भी बन्ध व सत्ता हो सकती है। अत: योग्यता की अपेक्षा से १४८ (औपशमिक सम्यक्त्वी, क्षायोपमिक सम्यक्त्वी अचरमशरीरी की अपेक्षा से) (क) चरमशरीर (क्षपक) चतुर्थ गुणस्थानवर्ती