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कर्मस्तव : परिशिष्ट ७, अप्रमत्तविरत मूल ६
उ०७३ वेदनीयद्विक (साता, असाता) आहारकद्विक, स्त्यानद्धित्रिक, मनुष्यायु-८ । छठे गुणस्थान के अन्तिम समय में इन आठ प्रकृतियों की उदीरणा रुक जाने मे ८१-८-७३ की उदीरणा सम्भव है। नोट-छठे गुणस्थान मे आगे ऐसे अध्यवसाय नहीं होते जिसमें साता, असाता वेदनीय, मनुघ्यायु की अदीरणा हो सके अतः उदय की अपेक्षा
ये तीन कर्म प्रकृतियाँ कम गिनी हैं। ८. अपूर्वकरण
उ०६६ सम्यक्त्वमोहनीय, अर्धनाराचसंहनन, कोलिकासंहनन, से वार्तसंहनन इन चार प्रकृतियों की
उदीरणा सम्भव नहीं। ६. अनिवृत्तिबावर मूल ६
हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा-६
की उदोरणा सम्भव नहीं हैं। १०. सूक्ष्मसंपराय मूल ६
उ०५७ स्त्रीवेद, पुस्पवेद, नपुसकवेद, संज्वलन क्रोध, . .... , मान, माया-६ की उदीरणा सम्भव नहीं है । ११. उपशांतमोह मूल ५
उ. ५६ संज्वलन लोभ की उदीरणा नहीं होती।
मूल ६