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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
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[इनका उदय तो नौवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक ही होता है। नोट-यदि श्रेणी का प्रारम्भक पुरुष है तो पहले पुरुषवेद के, फिर स्त्रीवेद के, फिर नपुंसक वेद के उदय को रोकेगा तदनन्तर संज्वलनधिक को। यदि स्त्री है तो पहले स्त्रीवेद को, फिर पुरुषवेद, फिर नपुसकवेद के उदय को और यदि
तक है तो पहले नई सायद को, किरात्री
वेद को, फिर पुरुषवेद के उदय को रोकेगा । ११. उपशांतमोह मूल ७
उ. ५६ संज्वलन लोभ का उदय नहीं रहता है। [उसका उदय तो दसवें गुणस्थान के अन्तिम समय में विच्छेद हो जाता है । जिनको ऋषभनागच व नाराच संहनन होता है वे ही उपशम
श्रेणी करते हैं। १२. क्षीण मोह मूल ७
उ० ५७ ऋषभनाराच व नाराचसंहनन का उदय सम्भव नहीं | इनका उदय ग्यारहवें गुणस्थान तक होता है। क्षपकश्रेणी बनऋषभनाराघसंहनन के बिना नहीं होती, अतः ५६-२=५७ बारहवें गुणस्थान के अन्त समय में निद्रा, प्रचला का भी उदय नहीं रहता अत: ५७-२
-५५ १३ सयोगिकेवली __ मूल ४
उ० ४२ ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अन्तराय