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८. अपूर्वकरण
कर्मस्तथ : परिशिष्ट
में उदय सम्भव नहीं अतः १ - ५-७६ का उदय सम्भव है ।
१०. लक्ष्मसंपाय
[ यद्यपि आहारक शरीर बनाते समय लब्धि का उपयोग करने से छठा गुणस्थान प्रमादवर्ती ( उत्सुकता से ) होता है, परन्तु फिर उस तद् शरीरी जीव के अध्यवसाय की विशुद्धि से सातवें गुणस्थान में तद् शरीर के होने पर भी प्रमादी नहीं कहा जाता []
मूल
उ० ७२
J
सम्यक्त्वमोहनीय, अर्धनाराच कीलिका, सेवार्तसंहनन इन चार प्रकृतियों का उदय विच्छेद सातवें गुणस्थान के अन्तिम समय में हो जाने से इस गुणस्थान में इन चार का उदय सम्भव नहीं । अतः ७६ - ४ ७२ प्रकृतियों का उदय सम्भव है !
C अनिवृत्तिबावर मूल
३० ६६
हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा =६ प्रकृतियों का उदय सम्भव नहीं है । क्योंकि इनका उदयविच्छेद आठवें गुणस्थान के अन्त समय में हो जाता है ।
मूल
उ० ६०
स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, संज्वलन कोध, मान, माया = ६ प्रकृतियों का उदयं सम्भव नहीं ।