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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
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तीसरे प्रदेश में मरण करता है। इस प्रकार अनन्तर-अनन्तर प्रदेश में मरण करते हुए जब समस्त लोकाकाश के प्रदेशों में मरण कर लेता है, तब उसे सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। बादर और सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन में इतना अन्तर है कि बादर में तो क्षेत्र के प्रदेशों के क्रम का विचार नहीं किया जाता है और सूक्ष्म में क्षेत्र-प्रदेश के क्रम का विचार होता है।
५. बावर काल पुद्गलपरावर्तन-नीस कोटा-कोटी सागरोपम के एक कालचक्र के प्रत्येक समय को क्रम मे या अक्रम मे जीव अपने मरण द्वारा स्पर्श कर लेता है तो उसे बादर काल पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। जब एक ही समय में जीव दूसरी बार मरण प्राप्त कर लेता है तो वह उसमें नहीं गिना जाता है। इस प्रकार अब भ . हुआ जीव कालचक्र के प्रत्येक समय को स्पर्श कर लेता है। तब वह बादर काल पुद्गलपरावर्तन पूरा होता है।
६. सूक्ष्म काल पुद्गलपरावर्तन-कालचक्र के प्रत्येक समय को जीव जब क्रमशः मृत्यु द्वारा स्पर्श करता है तो वह सूधम-काल पुद्गल परावर्तन है। अक्रम से समय को स्पर्श किया तो उसका इसमें ग्रहण नहीं होता है। जैसा कि अगर पहले समय को स्पर्श कर तीसरे समय को स्पर्श कर ले तो वह गिनती में नहीं लिया जायेगा। यानी क्रमबद्ध रूप से कालचक्र के समयों को स्पर्श कर पूरे कालचक्र के समयों को स्पर्श करना सूक्ष्म काल पुद्गल परावर्तन है ।
७. बादर भाव पुद्गलपरावर्तन-अनुभागबन्ध के कारण रूप समस्त कषायस्थानों को जीव अपनी मृत्यु द्वारा स्पर्श कर लेता है । अर्थात् मन्द, मन्दतर आदि उनके सभी परिणामों में एक बार मृत्यु प्राप्त कर लेता है तब उसे चादर भाव पुद्गलपरावर्तन कहते हैं।
८. सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन अनुभागबन्ध के कारणभूत