Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 228
________________ वित्तीय कर्मग्रन्थ : फरिशिष्ट ir w७02 ४ १३ ४ १३ १४ १४ १८ अस्थिर नामकर्म ८६ अशुभ , १३. १० दुर्भग १३६ ११ दुःस्वर , २ १२ अनादेय , ___१३ अयशःकीति नामकर्म ६ गोत्रकर्म२ १४२१ उच्चगोत्र १४३ २ नीचगोत्र अन्तराय ५ १ दानान्तराय २ लाभान्तराय ३ भोगान्तराय १० ४ उपभोगान्तराय ५ वीर्यान्तराय १२ १२ १२ नोट -(१। इस यत्र में उपशम और क्षफक इस प्रकार दो श्रेणियों की विवक्षा ली गई है। (२) नामकर्म की जिन प्रकृतियों की सत्ता चौदह मजस्थान सक कही है. उनमें से मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, स, बावर, पर्याप्त, सुभग, आदेश, यशःकोनि, तीर्थकर नामकर्म के सिवाय ७१ प्रकृतियों की सत्ता धौदहवें गुण स्थान के द्विचरम समय तक होती है।

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