Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 236
________________ २०१ द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट ३. तोसरे भाग के अन्त में संज्वलन मान का वि = *: ४. चौथे भाग में संज्वलन माया का विच्छेद =१६। ५. पाँचव भाग के अन्त समय में लोभ का बन्ध नहीं होता। अतः दसवें गुणस्थान में शेष १७ प्रकृतियां रहेंगी। १०. सूक्ष्मसंपराय मूल ६ ऊ. १७ दसवें गुणस्थान के अन्त समय में--दर्शनावरणीय ४, उच्चगोत्र १, ज्ञानावरणीय ५, अन्तराय ५, यशःकोतिनाम १=१६ प्रकृतियों का बन्ध विच्छेद हो जाता है, शेष १ प्रकृति रहती है। ११. उपशान्तमोह मूल १ उ०१ सातावेदनीय का बन्ध होता है । [स्थिति इसकी दो समय मात्र की होती है । योग निमित्तक है।] १२. क्षोणमोह मूल १ सातावेदनीय [योगनिमित्तक होने में स्थिति दो समय मान की है। १३, सयोगिकेवली मूल ? बारहवें गुणस्थान की तरह

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