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द्वितीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
३. तोसरे भाग के अन्त में संज्वलन मान का वि = *: ४. चौथे भाग में संज्वलन माया का विच्छेद =१६। ५. पाँचव भाग के अन्त समय में लोभ का बन्ध नहीं होता। अतः दसवें गुणस्थान में शेष १७
प्रकृतियां रहेंगी। १०. सूक्ष्मसंपराय मूल ६
ऊ. १७ दसवें गुणस्थान के अन्त समय में--दर्शनावरणीय ४, उच्चगोत्र १, ज्ञानावरणीय ५, अन्तराय ५, यशःकोतिनाम १=१६ प्रकृतियों का बन्ध
विच्छेद हो जाता है, शेष १ प्रकृति रहती है। ११. उपशान्तमोह मूल १
उ०१ सातावेदनीय का बन्ध होता है । [स्थिति इसकी दो समय मात्र की होती है ।
योग निमित्तक है।] १२. क्षोणमोह
मूल १ सातावेदनीय [योगनिमित्तक होने में स्थिति दो समय मान
की है। १३, सयोगिकेवली मूल ?
बारहवें गुणस्थान की तरह